Saturday, May 8, 2010

3.09 अश-अह आद्यक्षर वाले शब्द

543 अष्टावक्र (सबसे मुश्किल तो ई हे कि अगर लड़की पढ़ल हे त अफसरे हे आउ न पढ़ल हे त जाहिले हे । ओकरो पर से घर के काम-काज में निपुन हे कि न, मुँह समेट के रहेवाली हे कि न, बाप के गाँठ पूरा हे कि न । कहे के मतलब हे कि लड़की तो चाही सर्वगुणसम्पन्न । बाकि लड़का ? लड़का के पूछऽ मत । अष्टावक्र सूरत सकल वाला के भी स्वप्न सुन्दरी चाही ।) (अमा॰27:17:2.2)
544 असंका (= आशंका) (नसध॰ 10:46.5)
545 असंका (= आशंका) (असंका ओकर माय के मन में बनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.5)
546 असकुस (फूब॰ मुखबंध:2.5)
547 असथान (= स्थान) (धरती के ऊपर जे असमान  हे ओकरा में दिन में सूरज आउ रात में चान के जउन असथान हे, ओकरा से ढेर जादे ऊँचा असथान मगही साहित्य के असमान  में डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के हे) (अमा॰25:7:1.2, 3)
548 असनान (= स्नान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।) (अल॰6:14.11, 26)
549 असमर्थ (नसध॰ 32:139.6)
550 असमसान (= श्मशान) (औरत के ~ घाट पर जाय के सवाल पर भी कम बवाल न भेल) (अमा॰10:9:1.15)
551 असमान (= आसमान) (धरती के ऊपर जे ~ हे ओकरा में दिन में सूरज आउ रात में चान के जउन असथान हे, ओकरा से ढेर जादे ऊँचा असथान मगही साहित्य के ~ में डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के हे) (अमा॰25:7:1.1, 3; 28:18:1.7)
552 असमान (= आसमान, आकाश) (असमान-जमीन के फरक) (मकस॰ 13:3; 20:13)
553 असमान में गुम होना (गो॰ 8:39.16)
554 असमान में ढाही मारना (रम॰ 13:104.6)
555 असरा (अमा॰3:11:1.22; बअछो॰ 5:26.24)
556 असरा (~ में रहना, ~ देखना) (नसध॰ 1:6.14; 5:21.19; 35:152.9; 39:165.3)
557 असराफ (चुभसे॰ 1:2.4; रम॰ 14:112.13)
558 असली (नसध॰ 5:21.21; 33:144.9)
559 असलोक (= श्लोक) (अमा॰167:17:2.8)
560 असहाय (नसध॰ 38:162.26)
561 असाढ़ (अआवि॰ 81:3; नसध॰ 6:23.10; 26:116.7)
562 असाढ़ (= आषाढ़) (अमा॰30:13:1.6)
563 असान (= आसान) (नसध॰ 12:52.11)
564 असान (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.23)
565 असार (= आसार) (रजधानी से गाँव तक परिवरतन के हवा बहे लगल हे । अब नो छो बड़ी सकेरे होवे के असार दिखाइ पड़ रहल हे ।) (अल॰44:145.23)
566 असिरवादी (अमा॰174:7:1.18)
567 असी (= अस्सी) (नसध॰ 30:133.2)
568 असीरवाद (नसध॰ 5:17.23)
569 असीरवाद (अगे बेटी, चिट्ठिया में हमरो ओर से अलगंठवा के असीरवाद आउर ओकर माय के अकवार गहन भी लिख देहु ।) (अल॰9:29.14)
570 असीर्वाद (नसध॰ 11:48.16, 20; 24:97.29)
571 असुलना (कब॰ 19:8)
572 असूल करना (बअछो॰ 12:57.10; मसक॰ 16:16)
573 अस्तर (केकरो तन पर बस्तर नञ, घरवालियो के फट्टल साड़ी पर ~ नञ, मुदा ताड़ के छिलकोइयो से बत्तर जिनगी) (अमा॰173:16:1.15)
574 अस्त-व्यस्त (नसध॰ 36:153.17)
575 अस्तित्व (अपन ~ के ज्ञान होना) (नसध॰ 32:140.4; 35:150.22)
576 अस्थिर (= स्थिर) (नसध॰ 9:40.29; 22:91.28)
577 अस्पताल (नसध॰ 27:118.15, 119.13)
578 अहंकार (नसध॰ 35:150.16)
579 अहथिर (नसध॰ 32:139.10)
580 अहमियत (अमा॰174:6:1.15)
581 अहर ... पहर (ऊ अहर देखइत, पहर देखइत ओइसहीं खड़ा रहल बाकि ओकर मन के देवता न अयलन) (नसध॰ 44:194.30-31)
582 अहर-पहर (अरे हाँ भाय, तोहनी के अहर-पहर देखके आ रहलियो हे । हम वालमत विगहा के घाट पर पहर भर से बाट जोह रहलियो हल । ... चलऽ, अइते जा ।; इनखा जलदी चल जाय के चाही, काहे कि उ बेचारी अकेले घर में डिंड़िआ रहले होत । ... सुमितरी अहर-पहर देखके भले न बरेठा लगा देलकई होत ।) (अल॰31:97.7; 42:131.29)
583 अहर-पोखरा (नसध॰ 40:174.13)
584 अहरा (मसक॰ 68:6; नसध॰ 9:43.3; 35:149.3; 37:158.2)
585 अहरा (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1; 35:112.20)
586 अहरा (विनोबा जी सैकड़न गाँव में हजारो कुइयाँ बिना कमीसन लेले खनवा देलन, सैकड़ो बोरिंग धँसवा देलन आउ काम के बदले अनाज स्कीम के तहत कहुँ रोड पास करवा देलन तो कहुँ अहरा पर भर पोरिस मटियो देवा देलन; अहरे पोखरिये करहे नदिये तलइये नाले, हरि-हरि जलवा मछलिया बगुला सोहाहै रे हरी ।) (अमा॰19:12:1.2; 169:18:2.1)
587 अहरी (बअछो॰ 1:10.26, 11.11; 11:51.14, 52.7; 13:59.13)
588 अहरी (अहरी पोखरी भरल नहाए भईंस  पसर के पानी में) (अमा॰22:17:2.12)
589 अहिंसक (नसध॰ 40:178.11)
590 अहिल-दहिल (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.21; 19:61.15)
591 अहिवात (जुग-जुग अहिवात रहऽ) (नसध॰ 5:22.2)
592 अहूठ (मसक॰ 135:4)
593 अहे (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.16)

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