Sunday, October 18, 2009

14. ककारादि शब्द

1347 कंगरेस (= कांग्रेस) (नसध॰ 30:130.30)
1348 कंझिला (गो॰ 5:24.13)
1349 कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25, 27)
1350 कंटोर (गो॰ 5:24.27)
1351 कंटोल (= कंट्रोल) (नसध॰ 21:86.14; 47:205.9)
1352 कंडम (~माल) (मसक॰ 120:6)
1353 कंथा (मसक॰ 164:20)
1354 कंदा (जमुना के माय खाय बनावे ला ~ के तीना तरास रहल हल) (नसध॰ 44:195.8)
1355 कइथिन (गो॰ 1:9.16)
1356 कइल, कैल (ऊ जिनगी भर निर्वाह ~ चाहऽ हलन, {बिहारशरीफ के मगही में} "ऊ जिनगी भर निर्वाह करे ल/ करे लगि चाहऽ हला") (नसध॰ 8:35.7, 8)
1357 कइसन (अआवि॰ 20:22; गो॰ 1:3.1; मकस॰ 7.23)
1358 कइसन (कइसनो) (नसध॰ 3:9.10)
1359 कइसन-कइसन (गो॰ 7:34.30)
1360 कइसहुँ (गो॰ 3:17.24, 25)
1361 कइसहुँ-कइसहुँ (गो॰ 3:17.14)
1362 कइसहूँ (बअछो॰ 1:12.2; 10:50.23; 14:63.5; गो॰ 8:39.1; 10:43.18)
1363 कइसे (नसध॰ 4:14.4)
1364 कउँचाना (गारी दे-दे ताल लगावई, गिरहसवन के मन कउँचावई) (अमा॰18:11:1.15)
1365 कउआ न बोलतई त बिहान न होतई ? (बअछो॰ 14:61.15)
1366 कउआपाँड़ (केउ कहतो ~, मनोहरी पुकरतो केउ, केउ देतो जीया तोहर जार गे बहुरिया) (अमा॰14:11:1.12)
1367 कउची (मसक॰ 19:8, 27; 47:5, 11; 49:7; 71:12; नसध॰ 3:11.25; 4:14.5; 5:17.31; 26:114.1; 30:131.28; 33:144.5)
1368 कउची (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
1369 कउची (एकरा में ~ हे जे खानदान ला बड़ा जरूरी हे आउ महत रखऽ हे ?; खिस्सा करे के अलावे अब उनका कामे कउची हइन; कउची-कउची के) (अमा॰1:8:1.21; 9:14:1.12; 167:8:2.23; 174:15:1.4)
1370 कउची, कौची (बअछो॰ 4:21.23; 5:27.13; 16:72.25)
1371 कउड़ी (नसध॰ 12:51.15)
1372 कउन (अमा॰18:10:2.27; नसध॰ 7:30.8)
1373 कउनो (अआवि॰ 16:12; 36:15; बअछो॰ 1:12.7, 14; 2:16.8; 6:31.18)
1374 कउलेज (= कॉलेज) (अमा॰26:5:2.15, 17, 25, 6:1.4)
1375 कउलेजिया (चुभसे॰ 3:11.30)
1376 कउवा (नसध॰ 8:36.12)
1377 ककरी (हरियर हरियर ककरी) (अमा॰2:10:1.17)
1378 ककहरा (मसक॰ 71:5)
1379 ककहरा (अलगंठवा जब ककहरा भी न जानऽ हल तबहिए ओकर माय हनुमान चलिसा, शिव चलिसा कंठस्थ करवा देलक हल ।) (अल॰4:10.20; 31:98.15)
1380 ककहरा (ऊ पहिले सावित्री के पढ़ाना जरूरी समझलन । पेड़ के पत्ता से गिनती सिखैलन । जमीन पर ~ सिखैलन ।; सोनमतिया के भी सिलेट पर ~ लिखा के पढ़ाबऽ । तबे न ऊ ससुरार से दू गो अच्छर हमनी के लिखत ।) (अमा॰10:9:2.25; 30:15:1.6)
1381 ककहरा-फुटहरा (मसक॰ 71:5)
1382 ककहा (रम॰ 3:36.14)
1383 कका (मसक॰ 67:4, 13)
1384 ककुलइनी (तोर ककुलइनियो दूर हो जतवऽ) (नसध॰ 11:48.4)
1385 ककुलाना (लोग गोड़ ककुलावइत पीछे सरक जाथ) (नसध॰ 10:44.9)
1386 ककुहारो (मसक॰ 37:1)
1387 ककोड़बा, ककोकोड़बा (रम॰ 13:95.13)
1388 कक्कुट (गो॰ 6:28.32)
1389 कखनिये (ई ~ से दुआरी पर खड़ा हथ) (अमा॰22:8:1.28)
1390 कखनियो (= कभी भी) (अल॰34:108.10)
1391 कखनियों (गो॰ 4:22.15, 27; 6:30.8)
1392 कखनियों ... कखनियों (गो॰ 6:30.10-11)
1393 कखनियों, कखनिओ (मसक॰ 51:21, 18)
1394 कखनी (अमा॰169:12:2.24; गो॰ 5:25.31; 6:29.1; 10:43.27, 44.15; मसक॰ 176:3)
1395 कखनी (कखनियों-कखनियों) (गो॰ 2:12.6, 8; 3:19.3, 8; 6:30.7)
1396 कखनी (कल्ह ~ चलबऽ ?) (नसध॰ 26:115.10, 116.13)
1397 कखने (अमा॰166:10:1.15; रम॰ 16:124.8)
1398 कखने (अलगंठवा भी कुल्ली-कलाली कर के दलान पर चल गेल हल । रजेसर के देखे अलगंठवा कहलक हल -"कखने से आवल हऽ ? दिलदार भाय आउ रमेसर जी के का समाचार हइ ?") (अल॰29:89.19)
1399 कखनो-कखनो (फूब॰ 1:6.24)
1400 कखनौ (= कखनहूँ) (फूब॰ 6:22.28)
1401 कचउड़ी (चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल) (अमा॰16:11:1.20)
1402 कचकुच ('बाकि अब बिगड़ल बात सम्हर न सकऽ हे !' पशुपति बोललक -'अब पानी माथा से ऊपर गुजर गेल हे आउ एकाध रोज के कचकुच होवे त सम्हारल जा सकऽ हे । रोज के नरघट्टा से भला हे कि चूल्हा अलगे जले ।..') (मकस॰ 16:24)
1403 कचगर (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।; अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰6:18.27; 13:38.20; 36:115.2)
1404 कचरस (अमा॰168:8:2.11)
1405 कचराकूट (गो॰ 5:25.4)
1406 कच-सन (सुमितरी भी करहा से पानी छूके गोड़ चले ला बढ़इवे कइलक हल कि एगो साँप पर कच-सन सुमितरी के पैर पड़ गेल हल । सुमितरी बाप रे बाप, मइगा गे मइया करइत गुदाल करे लगल हल कि हमरा साँप भमोर देलक रे बाप ।) (अल॰18:54.16)
1407 कचाक (~ से) (एक ढेला बगल से उठा के बाबा के कचाक से मार देलन) (अमा॰22:14:1.13)
1408 कचूमर (~ निकाल के छोड़ देना) (नसध॰ 45:199.9)
1409 कचूर (हरिअर ~) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰8:22.30; 15:14.13; 22:69.12; 34:108.21)
1410 कच्चा (गरमे-गरम ~ दूध पीना) (नसध॰ 37:158.13)
1411 कच्ची (~ खिअबहू कि पक्की ?) (नसध॰ 9:38.9)
1412 कच्छा (अब पूजा-पाघुर के हलूमान जी के चढ़ौना अलगंठे अप्पन घर में सइंतऽ हे । आउ हनूमान जी येक हाथ में गदा आउर दूसर हाथ पर पहाड़ उठैले कच्छा कसके टुकुर-टुकुर ताकते रहऽ हथ ।) (अल॰43:140.20)
1413 कच्छा (ऊ अप्पन देह से धोती-कुर्ता उतार फेकलका आउ कच्छा कस के जाँघ पर ताल ठोक के बाँस बर उछल गेला) (अमा॰16:12:1.22, 24)
1414 कच्छा (लंगोटी-कच्छा) (अआवि॰ 69:9)
1415 कछटना (जिनगी कछट-कछट के बिततउ, ई सब सोचले ?) (अमा॰165:22:2.10)
1416 कछ-मछ (ऊपर से भगत-गुनी बनल हे आउ भीतरे-भीतरे ~ खा हे ) (नसध॰ 13:56.25)
1417 कछार (गो॰ 2:14.31)
1418 कजरहट (अमा॰7:19:2.9, 11, 17)
1419 कजरी (पुनियाँ के चाँद हँसल, दूर हे कजरिया) (अमा॰17:15:1.5)
1420 कजरी-उजरी (नसध॰ 25:108.18)
1421 कजरौटी (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.12)
1422 कझावा (~ से ईटा ढोवाय लगल) (नसध॰ 27:122.11)
1423 कटकटी (ई उनके करतब न हवऽ कि अइसन ~ में बाप-बेटा अठारह रोपआ कमा के लौलऽ) (नसध॰ 36:155.20)
1424 कटकुट (~ के चिन्ह) (जदि जतरा के समय बिलाई राह काट के भाग जाय, तब तुरते रहता पर कटकुट के चिन्ह (X) लगा देवे के चाही) (अमा॰1:9:1.29)
1425 कटनिहार (बअछो॰ 10:50.11, 21)
1426 कटनी (आयल अगहनमा त मन हरसायल । कटनी के धुन हम्मर मन में समायल ॥) (अमा॰30:11:1.2)
1427 कटपिलसिट (रम॰ 3:28.8)
1428 कटर-मटर (रम॰ 3:37.9)
1429 कटल-कटल (आखिर ऊ कउन गुनाह कैलक हे कि ओकरा पर कहर के दौर चालू हो गेल ? ओकर पति चन्दर भी तनी ~ रहे लगलन) (अमा॰29:13:1.7)
1430 कटहर (अमा॰3:18:2.27)
1431 कटहर (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
1432 कटासिन (अइसन ~ पुतोह मिलल हे कि आज हमरा नौ नतीजा करत) (अमा॰7:10:1.25)
1433 कटोरा (नसध॰ 41:181.30)
1434 कटोरा (हम ऊ झोला झाड़ली तब ओकरा में से पुरान अचकल-पचकल अलमुनिया के कटोरा आउ एगो फट्टल पुरान मइल कुचइल चद्दर मिलल) (अमा॰22:16:1.11)
1435 कटोरा-गिलास (गो॰ 5:23.30)
1436 कटोरी (नसध॰ 29:130.3)
1437 कट्टर (~ मुसलमान) (अमा॰17:6:2.1)
1438 कट्ठा (दू ~ बइगन) (नसध॰ 30:133.17)
1439 कट्ठा (पीपर तर अब पाँचे कट्ठा खेत न बचइत हे ?; अन्न ला परान छूटल जाइत हे, खेत हो गेल अब कट्ठा में ।) (अमा॰3:11:2.23; 26:11:1.12)
1440 कट्ठा (रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे । अब उनखा पास एको कट्ठा खेत न बचऽ हे ।) (अल॰8:23.9)
1441 कट्ठे मन (गो॰ 4:21.26)
1442 कठकरेज (अमा॰10:9:1.3)
1443 कठकरेजी (अदमी के दिल कठकरेजी के बनल न न हे) (अमा॰28:16:2.5)
1444 कठगर (फोहवा बुतरू नियन कठगर-कचगर-रसगर असतन में मुँह लगा के दाँत से सहलावे लगल हल, चुलबुलावे लगल हल ।) (अल॰36:115.1)
1445 कठघेरा (सुक्खू पंचायत के ~ से बोलल) (नसध॰ 13:58.1)
1446 कठनाइ (गो॰ 2:14.2)
1447 कठपुतरी (अमा॰17:10:1.9)
1448 कठपुतली (नारी भी तब ~ न हल । ऊ हल पूर्ण शिक्षित, ज्ञानी, सक्षम आउ पूर्ण योग्य ।) (अमा॰29:7:1.8)
1449 कठबोलिया (मीठबोलिया जहर आउ ~ अमरीत) (नसध॰ 27:119.30)
1450 कठमुरकी (नसध॰ 2:7.7; 4:15.32; 5:21.8; 25:105.14; 44:195.25)
1451 कठहुज्जत (मसक॰ 76:24)
1452 कठहुज्जति (अब पाणिनि के भी धँसोड़ के पराकृत के संस्कृत से उत्पन्न बतावे ओला कठहुज्जति लोग से कउन अनेरे माथा फोड़उअल करे ?) (अमा॰30:9:1.20)
1453 कठुआ जाना (गो॰ 3:15.26)
1454 कड़कड़ (पाकिट ~ रहना) (अमा॰174:8:2.21)
1455 कड़कड़ाना (दस रोपेआ के कड़कड़ाइत नोट) (नसध॰ 31:136.31)
1456 कड़रनी (कल से सब कमासुत लोग ओड़िया, कुदारी, कड़रनी, बसुला लेके अस्पताल के जमीन पर जुट जो) (नसध॰ 27:121.25)
1457 कड़रवा (अआवि॰ 80:20)
1458 कड़ाई (नसध॰ 12:53.9)
1459 कड़ाही (नसध॰ 29:129.31)
1460 कड़ुआ (~ तेल) (अमा॰13:8:1.16)
1461 कड़ुआ (~ तेल) (नाना-नानी के सरसो के कड़ुआ तेल में लहसून पका के देह में मालिस कर देलिअइ हे । ऊ सब के नीन भोरे टूटतइ ।) (अल॰36:115.15)
1462 कड़ुआ तेल (बअछो॰ 5:26.6)
1463 कढ़ुआ (गो॰ 1:11.13)
1464 कतकी (~ पुनिया, ~ धान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा-गंगा असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; कोय-कोय किसान अप्पन कतकी धान काट रहलन हल ।) (अल॰6:14.10, 26, 18.22, 20.27)
1465 कतराना (बोले से कतरा हलन) (नसध॰ 6:24.26)
1466 कतार (नसध॰ 29:126.1)
1467 कतिकउर (~ के घामा में मिचाई कोड़ के सुन्नर घरे आयल) (नसध॰ 39:163.31, 170.30; 46:202.10)
1468 कतिकउर (कतिकउर घाम आउ राड़ के बोली न सहाय) (अमा॰25:17:2:26)
1469 कते, कत्ते (चुभसे॰ 1:6.4; 3:9.14)
1470 कतेक (ई जात-पात के झगड़ा अइसन हे कि अजय के कहानी 'दरकइत देवाल' के परभुआ आउ पातो चा ~ परेशानी उठावऽ हथ) (अमा॰13:11:2.7)
1471 कत्ती (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
1472 कत्ते (चुभसे॰ 3:8.8)
1473 कत्ते (बिजली के लाइनो गुल हो गेल हे । "कत्ते गिरावट सब विभाग के काम-काज में आ गेल हे ।" - ऊ खिजला हथ ।) (अमा॰13:7:2.6; 166:11:1.24)
1474 कत्तेक (कत्तेक नेता, समाजसेवी आउ विद्वान ओहनी के जीवन-दर्शन पर लम्मा-चौड़ा भासन देलन) (अमा॰2:5:1.9)
1475 कथा-व्यथा (अपन कथा-व्यथा एके साँस में सुना देलक) (नसध॰ 28:124.3)
1476 कदई (= कादो, कीचड़) (~ परा देना) (केकरो ~ परावे से आउ कुम्हार के आवा फोरे से पानी होवे लगे तऽ भेल ?) (नसध॰ 6:26.30; 34:148.2; 41:181.25)
1477 कद-काठी (बढ़ावन चचा लगभग चालीस बरस के हो गेलथिन हल, तइयो उनकर कदकाठी में जवानिए के जोश खरोश भरल हलइन) (अमा॰19:11:1.1; 27:16:1.27; 30:14:1.2; 169:6:1.14)
1478 कदम (~ उठाना) (नसध॰ 35:149.26)
1479 कदर (नसध॰ 7:29.7)
1480 कद्दूकस (अमा॰15:9:2.27)
1481 कन (रो कलप के माय कन पइसा मांगे गेली) (मकस॰ 53:7)
1482 कनइठी (कब॰ 28:7; 32:26)
1483 कनइल (रम॰ 5:45.3)
1484 कनकट (गो॰ 1:10.17)
1485 कनकन (अइसन मलमली आउ ~ सोरा हावा हमरा इयाद से न बहल हल) (नसध॰ 27:118.17)
1486 कनकन (ओरियन से चूअ हइ ~ पनिया, कि बिरहिन के अँखियन से लोर) (अमा॰2:9:2.11; 6:8:2.4)
1487 कनकनी (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल । जेकरा से कनकनी महसूस होवइत हल ।) (अल॰6:14.21)
1488 कनकनी (महतो के ई ~ में खाली गोड़ जाइत देख के उनका मया लगल) (नसध॰ 10:45.7)
1489 कनकनी (सीतलहरी के कनकनी से रात भी न कटऽ हे आउ बिहने सउँसे देह कनकन सोरा हो जाहे) (अमा॰6:8:2.3)
1490 कनकन्नी (पूस के कनकन्नी आउ माघ के झिनझिन्नी खतम होवे पर वसंत रितु सोहामन लगऽ हे । न हिरदा हिलावे वला जाड़ा न देह जरावे वला गरमी ।) (अमा॰8:5:1.2)
1491 कनखी (नसध॰ 11:48.13)
1492 कनखी (~ मारना) (कनखी मारित बिचरइ निरदंद हिए हिड़िस अथोर) (अमा॰15:1:1.9)
1493 कनघटियाना (राह तऽ हमरो नऽ लोग चले देबे बाकि हम कनघटिअवले सब सुनइत बढ़ल जा हियो) (नसध॰ 18:75.1)
1494 कनघीचो (एक प्रकार के खेल) (मसक॰ 42:18)
1495 कनझटके (गो॰ 5:24.26)
1496 कनना (= कानना) (बुतरू ढेर रहला पर कोय रें रें कर रहल हे, तो कोय टें टें । कोय खाय ला कन रहल हे, त कोय दूध पीये लागी ।) (अमा॰24:15:1.7)
1497 कनना (रो-कन के; रोवइत-कनइत) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15; 11:33.25)
1498 कनना, कानना (चुभसे॰ 1:2.24) - कन्ने लगलूँ
1499 कनफुसकी (मसक॰ 25:28)
1500 कनफुसकी (विनोबा जी निडर आदमी हथ । ई केकरो से ~ न करऽ हथ ।) (अमा॰19:12:1.20)
1501 कनफुसियल (= confidential) (हाकिम के हुनखे से 'कनफुसियल' बात करे के हे) (अमा॰21:18:2.20)
1502 कनबाली (अमा॰17:8:2.12)
1503 कनमटकी (रम॰ 3:34.2)
1504 कनमनाहट (बअछो॰ 4:22.11)
1505 कनस्टर (बिहारशरीफ की मगही में "कंटर") (नसध॰ 29:126.3)
1506 कनहीं (ऊ ~ जादे व्यस्त हलन; अगर तोरो ~ इतिहास के कोना में नाम लिखवावे ला हवऽ तो धरऽ महारथी लोग के गोड़) (अमा॰11:13:1.6; 18:14:1.6)
1507 कनहूँ (नसध॰ 4:14.1)
1508 कनाड़ (गो॰ 9:39.24)
1509 कनाथ (जै गोरेया बाबा, अबरी कनाथ कर लऽ, जोड़ा छौना चढ़ैबो) (नसध॰ 39:165.13)
1510 कनिआइ (सावित्री अइसन समझदार कनिआइन के कमी आज भी घर-घर में खटक रहल हे) (अमा॰2:13:2.16)
1511 कनिआई ("एकरा में हम्मर कउन गलती अपने के नजर आ रहली हे ? हम तो चन्दर के कनिआई से तिलक में कोई खास चीज न मिले के चर्चा करइत हली ।" - चन्दर के माय बोललथी ।) (अमा॰29:13:2.20)
1512 कनिआय, कनिआई (चुभसे॰ 1:4.32, 5.25, 6.9, 12; 3:10.32)
1513 कनिया (बअछो॰ 15:68.16)
1514 कनिया (सास-ससुर होथिन चाहे बड़ गोतनी; बहुरिया के हँकएतन त कनिया चाहे कनेवा कहतन) (मकस॰ 43:2)
1515 कनियाँ (कब॰ 34:1)
1516 कनियाइन (मसक॰ 77:9)
1517 कनिवाँ (= कनेमा) (कफन खरीदे से का फायदा ? आखिर जरहीं न जा हई ? कनिवाँ के साथे तो जतई न !) (अमा॰28:11:1.21)
1518 कनी (गो॰ 6:30.28)
1519 कनून (= कानून) (आजकल के अइसने ~ हे) (नसध॰ 14:64.25)
1520 कने (नसध॰ 6:23.18; 14:64.2)
1521 कने (= कन्ने, किधर) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29; 17:52.6)
1522 कने (= कन्ने, किधर, कहाँ) (बसन्त बौरायल हे, फुनगी पर छितरायल हे, जड़ में घुसियाएल हे, कने-कने कहूँ, नख से शिख ले सगरो समाएल हे।) (अमा॰21:9:1.3)
1523 कने से कने (मसक॰ 43:24)
1524 कने, कन्ने (= किधर) (बअछो॰ 1:9.16; 5:27.1; 12:54.22)
1525 कनेटा (दिलदार राम, रजेसर-रमेसर, फन्नू मियाँ, सुमितरी-हेमन्ती भी अलगंठवा के दलान पर जुम गेते गेलन हल । अलगंठवा के सिरा भीतर आउर दलान के कनेटा काना आउर हथिया नछतर में गिर गेल हल ।) (अल॰44:152.11, 153.18)
1526 कनेमा (~ करिया बुझाइत हई गे । गोड़वा तो लगऽ हई अलकतरा में डूबल हई ।) (अमा॰167:9:1.2)
1527 कनेवा (= कनेमा, कन्या, बहू) (अमा॰27:7:1.13, 14:2.18)
1528 कनेवा (सास-ससुर होथिन चाहे बड़ गोतनी; बहुरिया के हँकएतन त कनिया चाहे कनेवा कहतन) (मकस॰ 43:2)
1529 कनौसी (पउँया-पार्टी रंग के चपल पहिन के, कान में कनौसी आउर नाक में नकवेसर पहिन के झनकावऽ हलइ । दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ । कोय-कोय कह हल कि "घोड़वा-घोड़िया राजी तऽ का करे गाँव के काजी ।") (अल॰32:103.22)
1530 कन्ने (हमरा छोड़ के कन्ने चल गेलऽ हो बाबूजी !) (अमा॰15:1:1.6; 171:10:1.17)
1531 कन्ने, केन्ने (मसक॰ 15:4; 93:23; 103:12; 110:24)
1532 कपड़ा-उपड़ा (नसध॰ 25:104.3)
1533 कपर कूटक (हिन्दी के दृष्टिकूट मगही में दसकूटक के नाम से जानल जाहे । गाँव-गँवई के लोग एकर जटिलता आउ दुरूहता के कारण एकरा 'कपर कूटक' भी कहऽ हथ ।) (अमा॰25:18:1.21)
1534 कपसना (रम॰ 13:107.11)
1535 कपसना (कपसे के) (गो॰ 1:4.30)
1536 कपसना (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.22; 11:33.17)
1537 कपार (नसध॰ 5:17.21; 38:162.18; 49:212.30)
1538 कपार (एँड़ी के लहर ~ पर चढ़ना; तरवा के लहर ~ पर चढ़ना; ~ ठोकना) (अमा॰9:18:2.12; 13:16:2.4; 23:13:2.34)
1539 कफन (नसध॰ 5:17.16; नसध॰ 12:52.13)
1540 कफन (कफन उफन लयले कि नऽ । का दिन भर लाश गाँवे में रखे के विचार हउ ?) (अमा॰17:9:1.2; 28:10:2.2)
1541 कब-कब करना (गो॰ 7:33.29)
1542 कबकबाना (पिल्लू नियन ~) (नसध॰ 12:51.10; 37:157.14)
1543 कबड़ना (ऊ एक्को लड़की के एक्को झलक देखबो न कैल कि सर्कस उहाँ से कबड़ के बम्बई चल गेल; राते फिन हम्मर खेत में से आलू कबड़ गेल) (अमा॰21:17:2.19; 28:7:1.20)
1544 कबड्डी (एक-दू जगुन लइकन के  ~ आउ चिक्का भी जमल हल) (नसध॰ 30:132.27)
1545 कबड्डी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
1546 कबड्डी-चिक्की (फिन जवनकन के गोल कुबरल बाकि लइकवन के कबड्डी-चिक्की अभी लगले हल) (नसध॰ 30:134.16)
1547 कबर (= कब्र) (तइयो हम एतना निलज्ज ही कि हम्मर पाँव कबर के तरफ बढ़बो न कैलक हे) (अमा॰21:18:2.5)
1548 कबरना (= कबड़ना) (दुन्नो ताड़ के पेड़ जड़ से कबर के पंडित सेनापति के दुन्नो कन्धा पर आ गेल) (अमा॰23:8:2.29)
1549 कबरना, कबर जाना (अब उहाँ से भूतनी के बसेरा कबर गेलो) (नसध॰ 11:48.32)
1550 कबराइ (गो॰ 3:17.9)
1551 कबरिया (ओने खेत में रोपनी धानो रोपऽ हलन आउ ... से ~ आउ बोझढोहा के खुस कैले रहऽ हलन) (नसध॰ 24:100.24)
1552 कबहियों ... कबहियों (गो॰ 6:32.23; 9:39.29)
1553 कबहियों-कबहियों (गो॰ 2:12.14)
1554 कबहुँ-कबहुँ (= कभी-कभी) (गो॰ 1:3.4)
1555 कबहुओं (गो॰ 1:11.6)
1556 कबहुओं-कबहुओं (गो॰ 1:8.16-17)
1557 कबहूँ-कदाल (गो॰ 2:13.15, 23)
1558 कबाड़ना (केतना मेहनत से हम परमेसरा के खेत में से बीस गो आलू कबाड़ के लइली हे) (अमा॰27:12:2.4; 166:14:2.7)
1559 कबाड़ीखाना (नसध॰ 29:126.3-4)
1560 कबारना (एक दिन तेतर भगत के लत्तर धनेसर कबार देलक) (अमा॰169:13:2.17)
1561 कबिलाँव (उत्तर कोई सुलझल न हे कि हम फाहे-फाह कह देउँ । जादे कबिलाँव में ढेरो अर्थ के अनर्थ हो जाहे ।) (अमा॰18:13:1.12)
1562 कबीरदास (नानी तो ~ हल । कहऊँ ओकरा गंदा लोकल तो ओकरा में सीधे आग लगा देलक आउ बढ़िया लोकल तो ओकरा पर अमरित भी छींट दे हल ।) (नसध॰ 43:188.26)
1563 कब्जा (खेत पर ~ करना) (नसध॰ 35:149.8)
1564 कभियो (अआवि॰ 88:29)
1565 कभी कभार (अमा॰11:7:2.5)
1566 कभी-कदाल (अआवि॰ 91:11)
1567 कभी-कदाल (झोला में एगो छोट साइज के गीता, एगो डायरी, कुछ लहसून के पोटा आउर लूंगी हल । कभी-कदाल भूख लगे पर दू जौ लहसून चिवा के भर हिंच्छा पानी पीके टंट हो जा हल ।) (अल॰44:149.28)
1568 कभी-कधाक, कभी-कदाक (गो॰ 8:39.10-11; 9:40.32)
1569 कभी-कभार (नसध॰ 17:72.29; 19:79.12, 22-23; 42:185.8)
1570 कभी-कभी (नसध॰ 29:126.32)
1571 कम (नसध॰ 38:161.25)
1572 कम (कम्मे उमर में) (अमा॰12:12:2.11)
1573 कमइनी (= कमाई) (पढ़-लिख के ऊ अच्छा ~ करत तऽ हमनी के बुढ़ारी सुख से कट जायत) (मकस॰ 29:22)
1574 कमइनी (हम भूखे भी मरम से कबूल हे, बाकि तोहर ~ न खायम) (अमा॰12:9:2.7)
1575 कमजोर (नसध॰ 27:120.32)
1576 कमजोर (दुसमन के कभी छोटा आउर कमजोर न समझे के चाही ।) (अल॰25:75.18)
1577 कमना (धीरे-धीरे हँफनी कमल जा रहल हे) (अमा॰13:8:1.11)
1578 कमाई (नसध॰ 21:84.15)
1579 कमाना (कमा के लाना) (नसध॰ 36:155.20)
1580 कमाना-कजाना (कमाय के न कजाय के, खाली बैठल-बैठल खाय के ।) (अल॰12.37.29)
1581 कमायल (ओकरा दोसर के ~ चोरावे के का अधिकार हई ?) (नसध॰ 27:120.11)
1582 कमाल (बुद्धि के ~) (अमा॰174:7:2.7)
1583 कमासुत (अमा॰14:10:1.7; 17:6:2.24; अआवि॰ 57:7; गो॰ 6:28.24; मसक॰ 115:19; नसध॰ 9:37.15)
1584 कमिअइ (गो॰ 3:17.8)
1585 कमिअइ (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।) (अल॰8:24.4)
1586 कमिनपनई (फूब॰ 7:25.10)
1587 कमिनी-धमनी (कब॰ 7:23)
1588 कमिया (किसान पुराना जमाना से ही दो सेर कची अनाज, इक्किस बोझा में एक बोझा, आउर पाँच कट्ठा खेत मजदूर इयानी कमिया सब के दे रहलन हल । मुदा मजदूर अब तीन सेर पक्की मजदूरी, चौदह बोझा में एक बोझा आउर तेरह कट्ठा के मांग कर रहलन हल ।) (अल॰15.43.25)
1589 कमियाँ (रोपनी लेतइ झुल्ला-साड़ी, आउ कमियाँ नचतै-गइतै) (अमा॰169:1:1.14)
1590 कमी (नसध॰ 35:150.23)
1591 कम्पटिशन (अमा॰16:13:1.6)
1592 कम्पाउंडर (बिहारशरीफ के ठेठ मगही में 'कम्पोटर') (नसध॰ 28:124.17)
1593 कम्पाउण्डरी (= कम्पोटरी) (शहर में नौकरी तलाश करे के बजाय दवाई बिक्री इया ~ के व्यवसाय में भी जुटल जा सके हे) (अमा॰29:5:2.31)
1594 कम्पोटर (मसक॰ 167:7)
1595 कम्पोटर (= कम्पाउंडर) (नसध॰ 29:126.23, 28, 31; 34:147.20, 27, 148.18; 39:165.4)
1596 कम्पोटरी (मसक॰ 168:14)
1597 कम्बल (~ ओढ़ के घी पीना) (आन्दोलन के सब नेता के चेहरा ओकरा घिनौना लग रहल हे । ओकरा लग रहल हल कि सब नेता कम्बल ओढ़ के घी पी रहल हल ।) (अल॰44:151.4)
1598 कम्मल ओढ़ के घी पीना (फूब॰ 5:19.20)
1599 कम्मे (= कम ही) (बअछो॰ 15:68.13)
1600 कय (= कई) (एगो कुइयाँ पर कय गो जनानी नहा रहलन हल) (अमा॰5:19:2.25; 173:15:1.14)
1601 कय (= कितना ?) (तूँ की करऽ ह बाबू, आउ कय गो भाई बहिन ह ?) (अमा॰165:5:1.25)
1602 कयल-धयल (उनका दया के सब ~ इयाद आवे लगल) (अमा॰12:14:1.13)
1603 कयल-धयल ('भुआ' डा॰ स्वर्णकिरण के कहानी हे । ई कहानी में मिसरी लाल के ~ बुढ़ारी में बेटा से जे उम्मेद हल ऊ भुआ बन के उड़ गेल ।) (अमा॰17:7:1.12)
1604 कर मोर के चल देना (गो॰ 5:24.23)
1605 करंट (बिजुली के ~ मारना) (नसध॰ 32:139.2)
1606 करइला (नसध॰ 7:30.16)
1607 करइला (फरत करइला खीरा शोभे लदबद फूल अलानी में) (अमा॰22:17:2.19)
1608 कर-कचहरी (लोग दूरा-दलान, ~ पर तिरंगा फहरयलन) (अमा॰2:6:2.13)
1609 करकराना (जेठ-मास में पहिला फुहार, मट्टी के सोन्हा महक आउ करकरावल जा रहल घीउ के महक जइसन) (अमा॰166:8:1.28)
1610 करकराना (लास जब पूरा जर गेल तऽ थोड़ा-सा कलेजा करकरा रहल हल तऽ ओकरा कपड़ा में बांध के कमर भर पानी में हेल के लोग परवह कर देलन हल ।) (अल॰11.34.28)
1611 करकस (= कर्कश) (उरुआ के ~ अवाज) (नसध॰ 35:151.19)
1612 करकासिन (अमा॰166:14:2.16)
1613 करकी (= काली) (करकी मिट्टी से धोवल लमहर-लमहर माथा के केस कमर तक घनघटा जइसन बसन्ती बेआर से रह-रह के पीपर के पत्ता जइसन डोल रहल हल ।) (अल॰34:108.20)
1614 करखाना (= कारखाना) (नसध॰ 25:104.1, 7)
1615 करगा (चिलकोरिया भी मरल-पड़ल एकरे ~ लग के सुतल हे) (अमा॰173:16:1.21)
1616 करज-गोमाम (= कर्ज-गोआम) (करज-गोमाम से लदल हकइ देहिया, देहु न बकार अब, उधार होबऽ कहिया, लोटा-थारी गिरों हकइ, हकइ न एको गहनमा) (अल॰19:63.10)
1617 करजा (फूब॰ 1:3.9)
1618 करजा-पइँचा (गो॰ 1:7.15; 3:18.6)
1619 करजा-पइंचा (अमा॰3:11:1.24, 12:1.2; 169:9:1.7; मसक॰ 9:10; 10:5)
1620 करजा-रीन (गो॰ 6:33.6)
1621 करतब (रोझन ऊ जमात के अपन करतब से एतना झुकौले हलन कि ..) (नसध॰ 6:27.10; 29:128.23; 33:143.32)
1622 करतापन (~ के भाव) (नसध॰ 35:150.17)
1623 करताहर (अमा॰2:5:1.8, 6:1.19)
1624 करनाह (रम॰ 10:79.19)
1625 करनी (नसध॰ 7:31.2; 23:95.8; 43:188.17)
1626 करनी (बीतल बतिया पर हँसएत ही, अप्पन करनी पर कानएत ही) (अमा॰14:6:1.17)
1627 करनी-करतूत (इनकर ~ के खिस्सा हजारो आदमी के जबान पर हे) (अमा॰19:11:1.10)
1628 करफू (= कर्फ़्यू) (अल॰38:119.14)
1629 करम (नसध॰ 7:30.22; 43:188.21)
1630 करम (सब ~ करके छोड़ना) (कब॰ 45:9)
1631 करम-किरिआ (आज तोहर करम-किरिआ करे ला हमनी इहाँ तोहरे आवे के बाट जोह रहलियो हे । आज तोहर कविता-केहानी आउ लिडरइ भूला जइतो ।) (अल॰27:82.14)
1632 करमचंडाल (मसक॰ 152:13)
1633 करमजरू (गरीब ~ बाप रउदा ओढ़ले-ओढ़ले, फाइल में डुबल-डुबल एक-ब-एक फरफरा उठऽ हे, थरथरा उठऽ हे) (अमा॰24:11:1.16)
1634 करमजली (मकस॰ 49:12)
1635 करमजोगी (नसध॰ 6:24.30; 38:162.21)
1636 करमात (अमा॰11:8:1.16; नसध॰ 8:31.30; 26:115.5; 34:145.23)
1637 करमी (मसक॰ 98:8)
1638 करमी (ठउरे गबढ़ा में करमी के लत्तड़ पर कइगो बगुला मछली के पकड़े ला धेआन मग्न हो के बइठल हल ।) (अल॰13.40.28; 43:143.28; 44:154.15)
1639 करमी (हम्मर कामना हे कि 'रजकण' जी के जस ई उपन्यास के जरिये मगही भासा आउ साहित्य के क्षेत्र में करमी के लत्तर जइसन फैले) (अमा॰1:15:2.19)
1640 करल (एकरा पर दया करल आउ करिया कम्बल पर रंग चढ़ावल दुन्नो बराबर हे) (अमा॰28:9:1.21)
1641 करल (देरी करल ठीक न हे; डंका के चोट पर कोई काम करल एकरे कहल जाहे) (अमा॰13:6:1.4; 16:4:1.26)
1642 करवइया (नसध॰ 9:42.31)
1643 करवट (~ बदलना) (नसध॰ 8:35.11; 38:162.17, 163.27)
1644 करवाई (= कार्रवाई) (नसध॰ 33:143.5, 10)
1645 करवैया (फूब॰ 3:12.2)
1646 करहा (= दौंग) (एही सब सोंचइत सब अउरत पीछे-पीछे सले-सले अपजस करे ला चले लगल हल । करहा में लट्ठा के पानी बह रहल हल खेत पटे ला । करहा भीर आके सभे छप्प-छप्प पानी छूए लगल हल ।) (अल॰18:54.13, 14, 15; 27:83:7, 17; 42:131.12)
1647 करहा (अहरे पोखरिये करहे नदिये तलइये नाले, हरि-हरि जलवा मछलिया बगुला सोहाहै रे हरी ।) (अमा॰169:18:2.1)
1648 करांति (= करान्ति, क्रान्ति) (औद्योगिक करांति के फलसरूप) (अमा॰17:5:1.1)
1649 करान्ति (= क्रान्ति) (अमा॰16:16:2.18)
1650 करार (~ कराना) (नसध॰ 42:185.16)
1651 कराही (~के पेनी; ~ के कारिख) (अमा॰21:16:2.19; 166:8:2.26)
1652 करिअट्ठी (बचपन में ओकरा संगी-साथी अपना साथे खेले भी न दे हलन । करिअट्ठी-करिअट्ठी कहके चिढ़ावऽ हलन ।) (अमा॰167:9:2.23)
1653 करिआना (= जिराना) (नेवारी के विनल चरजउरिया खटिया आउर ओकरा पर विछल रंग-विरंग के गेन्दरा के सियल सुजनी पर जाके अलगंठवा जरी करिआय ला  पड़वे कइलक हल कि अजाद के साथे रमेसर बुल-सन देखाय देलन हल ।; जरा हमरा करिआय दऽ, बचल-खुचल दोहरउनिया में साफ कर देम ।) (अल॰41:128.11; 43:142.8)
1654 करिक्का (मसक॰ 18:25; 49:2)
1655 करिखा (= कारिख) (अमा॰16:9:1.20)
1656 करिखा (= कारिख) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
1657 करिखा, कारिख (कब॰ 1:1)
1658 करिया (अमा॰1:18:2.4; 5:4:2.17; अआवि॰ 42:21; कब॰ 2:6; मसक॰ 13:8; 18:2, 25; 19:1)
1659 करिया (= काला) (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे ।) (अल॰16:48.23)
1660 करिया (कुचकुच ~; ~ कोठरी) (नसध॰ 1:1.24; 6:26.4; 43:191.17)
1661 करिया अच्छर भइँस बरोबर (गो॰ 4:22.30-31)
1662 करिस्मा (नसध॰ 12:55.27)
1663 करीगर (= कारीगर) (नसध॰ 43:190.28)
1664 करीवा (~ अच्छर) (सुनऽ नगेसर आउ परमेसर ! हम जब खतिआन पढ़ाएब तो तोरे लोग से । ई हम्मर परतिगेया हो गेल, आउ ई तब पूरा होयत जब तोहनी करीवा अच्छर जान लेबऽ आउ तोहनी के आँख में इंजोर होएत ।) (अमा॰30:15:1.2, 2.21, 22)
1665 करुआ (~ तेल) (नसध॰ 27:120.25)
1666 करुआ (~ तेल) (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.26)
1667 करुआ (मन ~ करना; ~ तेल) (अमा॰24:5:1.21; 166:5:2.26)
1668 करुआइन (नसध॰ 5:22.28)
1669 करुआइन (मलहोत्रा साहेब के ~ भासन) (अमा॰11:7:1.12)
1670 करुका (~ तेल) (अगे बेटी, दूनों हथवा में करुका  तेलवा रगड़ ले । ओकरे से ठीक हो जयतउ ।) (अल॰9:26.25)
1671 करुणा (~ विलाप) (नसध॰ 36:154.27)
1672 करे (पुरवारी ~) (मसक॰ 95:16)
1673 करेंट (~ मारना) (नसध॰ 29:130.12)
1674 करेजा (~ धरक-धरक  करना) (नसध॰ 5:16.27)
1675 करेजा (करेजा पर मूँग दरना) (मकस॰ 53:1)
1676 करेड़ (~ माटी पर जमल दुब्भी जादे दिन हरिअर न रहे) (कब॰ 8:15)
1677 करोध (= क्रोध) (~में आन्हर होना) (नसध॰ 4:15.19; 45:200.11)
1678 कर्म-द्रष्टा (नसध॰ 49:212.22)
1679 कर्म-पंथ (नसध॰ 49:212.26)
1680 कल (~ न परना) (नसध॰ 8:35.3)
1681 कल (= पानी का हैंड पम्प) (हम दउड़ के ओहिजा अगल बगल जेतना कल चाहे चापाकल हल सगरो देख अइली बाकि ऊ आदमी न मिलल) (अमा॰22:15:2.27)
1682 कलंकनी (नसध॰ 42:187.1)
1683 कलउआ (मसक॰ 84:3)
1684 कलकतिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
1685 कलकतिया (रोहन ~ हे) (नसध॰ 22:91.1)
1686 कलकत्ता (जस ~ तस नानी टोला - कोई नऽ केकरो पूछे ओला) (नसध॰ 25:109.11; 30:130.28, 29)
1687 कलछुल (कभी कलछुल, त कभी डब्बू से ओकर माय मारे भी दउड़ जा हल; ओकर करेजा में कलछुल चलइत रहे हे, तन-मन में तो अंधड़ तूफान रहे हे ।) (अमा॰17:8:1.25; 27:17:2.7)
1688 कलट-कलट के जीना (अमा॰17:5:2.15)
1689 कलटर, कल्टर (= कलट्टर, कलेक्टर) (अंतरी-मंतरी हीं से रोज फोन कलटर हीं आवऽ हे) (नसध॰ 45:199.6, 20; 46:202.30, 203.5, 6)
1690 कलट्टर (अमा॰5:19:1.20; बअछो॰ 9:44.16, 17, 19, 45.2, 7, 22; चुभसे॰ 1:4.15)
1691 कलपना-कलटना (कोई लड़की दहेज के चलते कलपे-कलटे नञ) (अमा॰165:6:2.16)
1692 कल-बल (गो॰ 1:3.23)
1693 कल-बल (~ से मेल में लाना) (अआवि॰ 31:7)
1694 कलम साही (नसध॰ 9:39.6)
1695 कलमस (= कल्मष) (नसध॰ 45:196.26)
1696 कलमी (गो॰ 1:10.17; 6:28.13)
1697 कलमुँहा (नसध॰ 4:14.24)
1698 कलसा (बअछो॰ 14:61.18, 26)
1699 कलह-कलकान (दरअसल गाँव लड़ाई-भिड़ाई ~ से दूर हल) (अमा॰169:13:2.12)
1700 कलाम (मैक्समूलर के कलाम हे कि पालि 'पाटलि' या पाड़लि' से बनल हे, जे साइत पाटलिपुत्र के भाषा हल) (अमा॰23:9:2.10)
1701 कलाली (रम॰ 17:129.7, 132.21)
1702 कलास (= क्लास) (तोहनी दुन्नो एक्के इसकूल के एक्के कलास में पढऽ ह) (अमा॰1:6:2.28)
1703 कलेयान (= कल्याण) (नसध॰ 46:203.3)
1704 कलौआ (तेसरकी मौगी सुरसतिया के जनमल चउदह बरिस के छौड़ी बसन्ती सुबह-शाम ओकरा ~ पहुँचा दे हल) (अमा॰6:15:2.27)
1705 कल्पना (~ में भी न सोचना) (नसध॰ 38:162.11)
1706 कल्याण (नसध॰ 47:206.31)
1707 कल्ह (फूब॰ 1:4.1; 6:22.11; गो॰ 1:3.16; नसध॰ 1:6.13; 6:23.9; 40:176.22, 23)
1708 कल्ह (~ परमुख के भोट पड़तय) (अमा॰173:1:1.12)
1709 कल्हे (मसक॰ 10:19; 20:5; मसक॰ 114:20; 162:15; नसध॰ 5:22.29)
1710 कल्हे (= कल) (कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।; ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰8:25.2; 9:27.31)
1711 कल्हे (= कल) (कल्हे यानी एतवार के तीन बजे दिन में दाऊदनगर के गर्ल हाई इस्कूल के मैदान में देस के भावी प्रधानमंत्री के आगमन होइत हे) (अमा॰18:8:1.21; 163:14:1.19, 25)
1712 कल्हे-परसुन (गो॰ 1:9.3)
1713 कवले से (फूब॰ 1:3.18)
1714 कसइनी (ई कसइनी, हत्यारिन हमरा सड़ल-गलल खाना दे देवऽ हल) (अमा॰163:15:2.31)
1715 कसइया (कभी-कभी अलगंठवा के माय-बाप में वतकुच्चन हो जा हल । तऽ माय एगो कहाउत कहऽ हल -"मइया के जिया गइया निअर आउ बपा के जिया कसइया निअर ।") (अल॰12.36.9)
1716 कसइला (जमुना जी के मुँह ~ हो गेल) (अमा॰16:16:2.27)
1717 कसके (~ बिगड़ जाना; कस-कसके फूँकना) (नसध॰ 1:2.21; 29:129.2)
1718 कसबी (फूब॰ 2:7.10)
1719 कसम (हमरो ~ खिआवल गेल हे कि ..) (नसध॰ 27:122.17)
1720 कसमस (कसमस-कसमस करे लगल ई, हठ छोड़ऽ धर दऽ उतार के ॥) (अमा॰23:11:1.12)
1721 कसर-कुसर (तूँ दिलजमइ रहऽ इयार । आज्झ कसर-कुसर जे बाकी हइ ओहु पूरे हो जइतइ ।) (अल॰33:105.31)
1722 कसरत (नसध॰ 9:42.6)
1723 कसल घोड़ा आउ सपरल बेटा के रूके के न चाही (रम॰ 13:105.1)
1724 कसवा (नसध॰ 6:26.2)
1725 कसवाना (दोकान के माल कसवा के) (नसध॰ 11:47.22)
1726 कसहा (~ थारी) (मसक॰ 97:18)
1727 कसाइन (बात तो बड़ा ~ आउ तीखा हल) (अमा॰11:14:2.5)
1728 कस्तरी (नसध॰ 29:130.7)
1729 कस्तरी (लम्पट के हाथ से कस्तरी आउ लोटा ले ले हथ) (अमा॰22:8:1.25)
1730 कहँय-कहँय (= कहीं-कहीं) (मसक॰ 99:15)
1731 कहँरना (नसध॰ 27:118.20, 120.28)
1732 कहईं (नसध॰ 8:32.7)
1733 कहईं (हम कहईं के नऽ रहली, घरे के नऽ घाटे के) (अमा॰25:8:2.18)
1734 कहउतिया (लोकवार्ता के कथावस्तु वर्तमान के न होके परम्परा से आयल रहऽ हे । अइसन अवधारण लोक-विश्वास, अंध-विश्वास, रीति-रेवाज, परदरसन, लोक-नाट्य, धरम-कथा, अवदान परम्परा, लोककथा, धरम, अनुष्ठान, प्रकृति सम्बन्धी धारणा, जादू-टोना, कहउतिया, परतूक आदि हो सकऽ हे ।) (अमा॰25:13:1:17, 17:2.4, 6)
1735 कहऊँ, कहउँ (= कहीं) (नसध॰ 3:12.13; 4:16.4; 7:30.2)
1736 कहनई (ई हे कहानी में नायक के कहनई, जेकरा से समाजिक जीवन में आयल तफड़का के झलक मिलऽ हे) (अमा॰13:13:1.11)
1737 कहना (कहते नयँ बनना) (दरोगी जी से कहते नयँ बनल । बस सुनते रहलन संघतियन लोग के बात-विचार ।) (अमा॰29:12:1.5)
1738 कहना (का कहियो मिसिर जी) (नसध॰ 7:30.1)
1739 कहनाम (अमा॰2:6:2.23; 5:4:1.21; 10:16:1.6; 15:13:1.4; 19:13:2.17, 14:1.2; 23:9:2.13; 24:6:2.3; 25:18:2.7; 29:13:2.23; 171:5:2.33, 7:1.11; 172:15:2.2; अआवि॰ 39:10; कब॰ 7:6; 43:10; 58:13; मसक॰ 155:26; 172:7)
1740 कहनी (बाप के कहल सब ~ इयाद आ गेल) (नसध॰ 24:102.11)
1741 कहनी (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.3; 16:47.15; 32:103.29)
1742 कहनी-करनी (नसध॰ 30:132.1)
1743 कहर (आखिर ऊ कउन गुनाह कैलक हे कि ओकरा पर कहर के दौर चालू हो गेल ?) (अमा॰29:13:1.6)
1744 कहल (फूब॰ मुखबंध:1.27)
1745 कहल (हम अपन ~ फेर लेलियो मुखिया जी) (नसध॰ 9:39.8)
1746 कहल-बदल (जब तक पूरब में लाली न धप जइतइ तब तक सुमितरी ढिवरी जला के वाट जोहते रहतइ । ई सब कहल-बदल हइ ।) (अल॰42:132.2)
1747 कहल-सुनल (नसध॰ 19:78.15-16)
1748 कहल-सुनल (ई सब अकसरहाँ मुँहजबानी (मौखिक रूप से) कहल-सुनल जाहे आउ एक कंठ से दोसर कंठ में चलइत हजारन बरस से जीवित हे) (अमा॰25:13:1:18)
1749 कहलाम (गो॰ 3:18.7)
1750 कहलाम (= सिद्धांत) (नसध॰ 49:209.28)
1751 कहाँ राजा भोज आउ कहाँ भोजुआ तेली ? (बअछो॰ 9:42.20-21)
1752 कहाउत (= कहावत) (नसध॰ 45:198.4)
1753 कहाउत (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।; कहाउत हे न कि हारे न हुरे तऽ दूनो गाल थूरे ।) (अल॰8:24.2; 24:74.22)
1754 कहाउत (मगही के खाँटी मुहावरा आउ कहाउत) (अमा॰1:15:2.13; 18:4:1.1, 7.10, 12:1.12; 28:4:1.23; 172:12:2.4)
1755 कहार (बअछो॰ 1:9.12)
1756 कहिना (गो॰ 6:31.15)
1757 कहिना (= कहिया) (अमा॰4:20:2.15)
1758 कहिना (कहिनो) (नसध॰ 1:2.26; 3:11.2; 5:21.28)
1759 कहिनो (गो॰ 2:13.6; 4:23.19; 5:24.29; मकस॰ 9:13; मसक॰ 113:14)
1760 कहिनो (= कहियो, कभी, किसी दिन) (कहिनो ई छात्रावास के दाई बनल हल तो कहिनो केकरो भन्सा के सीधमाइन) (अमा॰19:13:2.26)
1761 कहिनो कदाक (गो॰ 7:36.2)
1762 कहिया (अमा॰3:4:2.15; 172:10:2.5; बअछो॰ 1:9.9; 5:28.2; 9:43.2, 18; 12:57.15; कब॰ 11:20)
1763 कहिया से (बअछो॰ 8:39.5)
1764 कहिये(= कब के) (बअछो॰ 1:12.10)
1765 कहियो (= कभी भी) (मसक॰ 8:20; 10:10; 76:5, 6; 109:11; 175:27)
1766 कहियो (= कभी) (गो॰ 1:7.14)
1767 कहियो (= कभी, किसी दिन) (देख बेटा ! कहियो तो शादी करहीं पड़तउ ।; कहियो तो रउदा करे निज बादरकट्टु रामा, हरि-हरि कहियो निरन्तर झड़िया लगावे रे हरी ।; रोज कइसहूँ चूल्हा पर, सेंकऽ ही हम रोटी । कहियो जे देरी होवऽ हे, फोड़ऽ ह नरेटी ।।) (अमा॰11:17:2.1; 13:8:1.29, 31; 169:18:1.19; 172:20:1.6)
1768 कहियो (=कभी भी) (बअछो॰ 6:31.1; 10:46.2)
1769 कहुँ-कहुँ (= कहीं-कहीं) (गो॰ 1:1.7)
1770 कहूँ (= कहीं) (अगर कहूँ गिर जाय छूट के, बिखर जाय सब अंग टूट के ।) (अमा॰23:11:1.14)
1771 कहूँ से कहूँ (गो॰ 2:15.7)
1772 कहैं (= कहीं) (फूब॰ 5:19.16)
1773 का (= काका) (कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कनेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन ।) (अमा॰16:11:1.23)
1774 का (= क्या) (बअछो॰ 9:42.15, 43.13; बअछो॰ 16:70.2, 3; नसध॰ 1:1.26)
1775 का (क्या) (मसक॰ 10:26; 13:6, 9)
1776 का जनी (नसध॰ 26:114.5)
1777 का जानि (अमा॰2:10:2.18; 12:4:2.17)
1778 का जानी (अमा॰18:4:1.4; 170:11:2.7; चुभसे॰ 3:9.27-28; नसध॰ 21:87.10)
1779 का तो (नसध॰ 5:18.1; 17:74.1)
1780 का दो (बअछो॰ 1:10.5)
1781 काँइयाँ (नसध॰ 3:12.29)
1782 काँके (केकरो से बतकुच्चन करे घड़ी समझदार सरोता अनजान आदमी से कहऽ हथ - 'भाई ! इनका से बहस मत करऽ । ई काँके रिटरन हथ ।') (अमा॰19:11:2.14)
1783 काँच कुँआर (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.7)
1784 काँच-कुँआर (रम॰ 19:138.6)
1785 काँच-कुँआरी (हम्मर गाँव में कई गो काँच-कुँआरी अजदूर-मजदूर से गोड़ भारी करवा के ढीढ़ा फुलवा के चमइन से पेट गिरवावऽ हे ।) (अल॰43:139.18)
1786 काँट-कुश (अमा॰27:5:1.13)
1787 काँटा (नसध॰ 6:24.24, 25.8)
1788 काँटा-कुस (अमा॰174:13:1.9)
1789 काँटी (दउड़ल-दउड़ल गेली हम पकड़े गाड़ी । गाड़ी तो पकड़ली, लेकिन -- हाथ में गड़ गेल काँटी ।) (अमा॰24:9:2.15)
1790 काँत (दू ~ आउ नऽ खेले देवऽ भिखन भाई ? ई तो बढ़िया खेल हे ।) (नसध॰ 31:136.2, 4)
1791 काँप (बढ़ल धान में निहुर के धान सोहे से काँप लग-लग जा रहल हल | से देह चनछनाय लगल हल बाकि रमेसर सरद-गरम सहले हल ।) (नसध॰ 39:170.31)
1792 काँपी (नसध॰ 8:35.31)
1793 काँय-काँय (अइसन लइके हई । रात-दिन ~ करते रहऽ हई ।) (अमा॰10:11:2.25)
1794 काँस (~ फुला के बरखा अपन बुढ़ारी के खबर जना देलक) (नसध॰ 9:36.20)
1795 काँस-कुस (गो॰ 1:6.7)
1796 कांटी, काँटी (नसध॰ 10:43.24, 28)
1797 कांढ़र (मसक॰ 115:9, 17)
1798 कांढ़र-गिद्ध (मसक॰ 115:9)
1799 काइल (नसध॰ 9:39.8)
1800 काकुट (रम॰ 4:38.2)
1801 कागज (नसध॰ 26:117.15)
1802 कागज-उगज (फूब॰ 7:24.7)
1803 कागज-पत्तर (अमा॰28:11:2.29-30, 12:1.2-3, 15:1.25; नसध॰ 13:59.11)
1804 काज-परोज (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.16)
1805 काजर (~ करना) (नसध॰ 9:37.1)
1806 काजर-बीजर (~ मत बन तिलेसरी ! जमाना मार देतउ । अइसन सिंगार-पटार बड़कन के बेटी करऽ हे । ओखनी एसनो-पाउडर, काजर-बीजर करऽ हे, त सोहऽ हे । तों करबे, तब लोग तोरा रंडी-पतुरिया कह देतउ ।) (अमा॰168:9:2.2)
1807 काजर-विजर (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.19)
1808 काजिनी (= का जानी) (ओकर दवा से कोय फायदा न बुझायल । काजिनी कइसन दवा देहे ।) (अल॰14.42.17)
1809 काजीनी, कीजनी (काजीनी - रम॰ 6:53.2; 15:118.8)
1810 काट-कपट करना (नसध॰ 41:183.26)
1811 काट-कपट के (मसक॰ 72:9)
1812 काट-कुट के (मसक॰ 99:22)
1813 काटना (जे रोपत से काटत) (नसध॰ 30:131.33)
1814 काटना-पीटना (गो॰ 3:17.9)
1815 काटा‍ (= काँटा) (नसध॰ 31:135.15)
1816 काटेवाला (अआवि॰ 111:28)
1817 काठ (नसध॰ 27:119.8)
1818 काठ (~ मार जाना) (जहिया साँझ के सुनली कि बालेश्वर सिंह दू बरिस पहिले चल गेलन, (त) एकाएक काठ मार गेल, पैर के नीचे के धरती खिसक गेल) (अमा॰28:15:1.2)
1819 काठ के उल्लू (फूब॰ 5:18.25)
1820 काठ मारना (गो॰ 6:31.10-11)
1821 काठो के सउतिन बैरिन होवऽ हे (मसक॰ 43:26)
1822 काठो के सउतीन बैरीन होवऽ हे (कब॰ 50:12)
1823 काड (रम॰ 13:97.1)
1824 काड़ा (जल्दी पुंज लगत ~ से भरलै खरिहनियाँ, से भर जयतइ बोझा से सउँसे खरिहनियाँ ।) (अमा॰174:12:2.5)
1825 काड़ा सुद पर पइसा देना (गो॰ 6:32.26)
1826 काडी (मैट्रिकुलेशन तक हम जादे कुछ न पढ़ली, अप्पन जादे समय क्रिकेट, गुल्ली-डंडा, अत्ता-पत्ता, काडी आउ हू-तू-तू जइसन खेले खेल में बिता देली हल) (अमा॰8:11:1.26)
1827 कातिक (अआवि॰ 80:29; गो॰ 6:27.19; नसध॰ 40:178.1)
1828 कातिक (कातिक-अगहन में) (अमा॰13:8:1.23; 15:6:1.1)
1829 कातो (गो॰ 3:19.7; 5:24.13; 7:35.4, 9; नसध॰ 9:40.24; 21:84.26; 24:99.23; 26:113.8; 30:131.28; 31:137.6)
1830 कातो (~ बूढ़ सु्ग्गा पोस न माने बाकि कुत्ता ला इहऊँ अपवाद हे; जादे बोले के न चाही (एन्ने-ओन्ने देख के) ~ देवालो के कान होवऽ हई; देखइत ह न तोहनी सभे, गंगा नेहाए से पवित्तर हो जयतन ~ ; सुनऽ एकर बात ! एहि समझदार हे हमरा से ~; कन्हइया के बाँसुरी के अवाज सुनके उनकर गाय सब ~ आ जा हलइ; हे भगवान ! ~ पइसा ला लोग छोट-छोट बचवन के अपहरन करऽ हथ; ~ नोकरिया बाप के मरला पर मइया के आठ लाख रुपइया मिललइ हल) (अमा॰11:9:1.27; 20:10:1.35; 163:15:2.16; 165:7:2.28, 9:1.11; 171:11:2.16; 173:11:1.22, 2.2)
1831 कातो (= कीतो) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
1832 कातो, कादो (मसक॰ 10:29; 127:15; 129:28; 153:25)
1833 कादो (= का तो) (रम॰ 3:36.18, 37.12; 4:42.11; 5:47.23; 8:63.7, 66.11, 68.20, 69.3, 13, 16, 21; 9:73.16; 10:80.13, 81.12; 82.12; 12:89.12, 91.18, 92.11; 14:110.7; 15:119.3)
1834 कादो (= कातो) (सूबेदार सिंह के बेटा कादो पढ़े में नामी हल) (अमा॰16:9:1.13)
1835 कादो (= कातो, कीतो) (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।; कादो बड़ावर में कोय साधु हथिन जे जड़ी-बूटी के दवा करऽ हथिन ।;  तूँ कादो कोय साधु जी के  वारे में जानऽ हु ?; भला सुनऽ त, हम मुसहरवा के छुअलका कादो जेमम ।) (अल॰7:22.17; 10.31.2, 4; 14:42.14; 18:54.9; 20:65.10; 43:142.1)
1836 कादो-पाँको (~ से लेटल-पोटल कपड़ा) (अमा॰13:6:2.4)
1837 कान (~ काटना) (नसध॰ 40:175.4)
1838 कान पातर (नसध॰ 1:6.8)
1839 कान-कोतर (कब॰ 38:24)
1840 कान-कोतर (पहिले समाज में सब निबह जा हलई, ~, लुल्हा-लंगड़ा सब । अब लोग बेदर्द हो गेलन हे । नीमन-नीमन तो मारल चलइत हथ । सब के चाही गोर, सुत्थर, इन्नर के परी मेहरारू, ऊपर से ढेर मानी दहेज भी ।) (अमा॰167:10:1.34)
1841 कानना (= कनना) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27; 28:85.16)
1842 कानना (= रोना) (बीतल बतिया पर हँसएत ही, अप्पन करनी पर कानएत ही) (अमा॰14:6:1:17; 171:9:2.21)
1843 कान-पट (~ लगा के सुनना) (नसध॰ 24:97.6)
1844 काना (रम॰ 12:87.1; 14:108.4)
1845 काना (= उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र) (दिलदार राम, रजेसर-रमेसर, फन्नू मियाँ, सुमितरी-हेमन्ती भी अलगंठवा के दलान पर जुम गेते गेलन हल । अलगंठवा के सिरा भीतर आउर दलान के कनेटा काना आउर हथिया नछतर में गिर गेल हल ।) (अल॰44:152.11)
1846 काना बेटा भला मुदा अँखगर बेटी न (रम॰ 4:42.9-10)
1847 कानी गइया के अलगे बथान (कब॰ 53:9)
1848 काने-काने (~ सउँसे समाज में फैल जाहे) (नसध॰ 38:161.14)
1849 कान्हा (= कंधा) (नसध॰ 6:28.16; 16:70.7; 19:76.30; 49:212.24)
1850 कान्हा (= कन्हा, कन्धा) (अमा॰18:9:2.21)
1851 कापी (हम वयस्क शिक्षा के कार्यक्रम से सब के पढ़वा देम । सिलेट, पीलसीन, कापी, किताब, लालटेन आउ दरी के साथ पढ़े के आउ सब समान मिलत ।) (अमा॰30:15:2.17)
1852 काबिल (अमा॰12:9:2.27; अआवि॰ 111:19; फूब॰ 2:8.3)
1853 काबिलियत (अमा॰12:10:1.13)
1854 काबू (अरे जब ला करवऽ बाबू-बाबू, तब ला करऽ अपन काबू, अपन हाथ गोड़ पऽ भरोसा रखऽ, सब कुछ हो जयतो ।) (नसध॰ 9:38.26)
1855 काबू (फिर रोआँसी होके कहऽ हल - 'अब काबू थक गेल बउआ । मेला का जायम ? ..') (अमा॰22:16:2.3)
1856 काम (~ लगना) (कल से अस्पताल में ~ लग जयतो, सब ठीक हो जायत) (नसध॰ 27:120.33)
1857 काम किरिया (रम॰ 13:106.1)
1858 कामकरनी (~ समिति) (अमा॰11:2:1.17, 23)
1859 काम-किरिया (अमा॰1:10:1.3; 166:8:2.18; 171:8:2.20; नसध॰ 12:51.20)
1860 काम-किरिया (गरान से हमनी के दम घूट रहल हे । घर में बेटा-पुतोह आउर जनाना तक भर जी न बोलऽ हे । बड़का छउँड़ा गोपलवा तऽ कह देलक कि हम तऽ ओही दिन तोहर काम-किरिया कर देलियो जउन दिन तूँ जेल गेलऽ हल ।) (अल॰33:106.27)
1861 कामचलाउ (अमा॰16:15:1.26)
1862 कामचोर (माधव के घरुआरी बुधिया जहिया से आयल हे, तहिया से दुन्नो बाप-बेटा आउ कामचोर हो गेलन) (अमा॰28:7:1.4)
1863 काम-धाम (अमा॰17:9:2.6; 173:19:1.29; नसध॰ 9:42.18; 29:128.27; 41:184.10-11)
1864 कायथ (फूब॰ 1:3.8; नसध॰ 39:171.4)
1865 कायम (नसध॰ 35:151.1)
1866 कार-गोर (गो॰ 1:9.25)
1867 कारज (अआवि॰ 80:7)
1868 कारन (= कारण) (एकरे ~) (अमा॰17:5:1.5)
1869 कारन (हमरा ~ अपने के कष्ट उठावे परल)) (नसध॰ 28:123.21)
1870 कारी (केउ कहतो गोरी-कारी, केउ कहतो चोन्हरी, केउ कहतो भउजी ललकार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.4)
1871 कारीख (नसध॰ 29:129.7)
1872 कारीगरी (= करीगरी) (अमा॰12:7:2.28)
1873 कारीवांक (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
1874 कार्य (रचनात्मक ~) (नसध॰ 37:160.24)
1875 काल (नसध॰ 30:133.5)
1876 कालिज (कॉलेज) (फूब॰ 4:14.20, 22)
1877 काली (~ जी सवार होना, ~ बन जाना, ~ माय आना, ~ जी आना) (नसध॰ 1:2.23; 2:7.22; 5:18.1, 19.15)
1878 कालीथान (अमा॰6:15:2.7)
1879 काहाँ (गो॰ 8:38.6; नसध॰ 8:32.22)
1880 काहे (बअछो॰ 14:61.12, 63.2; 17:74.15; फूब॰ 1:5.6, 33; गो॰ 3:19.32; कब॰ 1:10; मसक॰ 31:1; 32:16; नसध॰ 1:2.26; 8:32.6; 30:131.17)
1881 काहे (पढ़ाई के सैद्धान्तिक आउ व्योहारिक पक्ष में एतना अन्तर काहे हे ?) (अमा॰24:6:1.26)
1882 काहे कि (अमा॰14:4:1.21; 17:10:2.6, 22; 173:13:2.21, 25, 16:1.2; अआवि॰ 50:30; 64:6; 90:18; 102:25; रम॰ 3:27.23, 28.15; 12:93.15; 13:95.4, 101.1, 107.19; 14:109.12)
1883 काहे कि (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30; 4:9.14)
1884 काहे से कि (अमा॰11:7:2.9, 8:2.18, 9:1.1, 29; 16:17:2.8, 20; नसध॰ 10:46.5, 14; 13:56.5; 25:106.15; 26:118.6; 29:127.27, 128.1; 32:139.14; 40:174.4; 42:184.18; 48:209.22)
1885 कि (= या) (गाँव में नरक कि नरक में गाँव) (नसध॰ 18:74.17; 27:121.4)
1886 कि-कि (न जाने देश-विदेश से ऊ ~ सामान एन्ने-ओन्ने करो हलथिन कि उनका लोग बड़का स्मगलर कहो हलन) (अमा॰6:15:1.16)
1887 किकुरल (मच्छी मारइत चलऽ हे, पेट जतले ~ रहऽ हे) (नसध॰ 24:101.11)
1888 किच-किच (~ भेलइ अंगनमा सगरो) (अमा॰3:19:1.21)
1889 किछारे (नदी ~) (नसध॰ 37:158.22)
1890 किताब (किताब कौपी) (अमा॰12:17:1.20; 30:15:2.17)
1891 कितो (चुभसे॰ 1:6.13)
1892 किदोड़ (गो॰ 2:13.30)
1893 किदोड़ा (आस-पास कास फूले धान खेते झूला झूले, हरि-हरि पनियाँ ~ फरियावे रे हरी ।) (अमा॰169:18:2.19)
1894 किनछारे (इतने में दखिन से नदी के किनछारे-किनछारे एगो डेंगी खेवइत दू-ती अदमी के आवइत देखके सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, लगऽ हइ कोई परेत हमनी के पकड़े ला आ रहले ह ।") (अल॰31:97.2)
1895 किनना (गो॰ 10:44.17)
1896 किनना (= खरीदना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11; 6:18.3)
1897 किनाना (= खरीदवाना) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
1898 किनाना (किनाइत हे) (मसक॰ 99:13)
1899 किया (= कीया; सिंदूर रखने का लकड़ी का डिब्बा) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
1900 किरखी (=  कृषि) (मसक॰ 112:19)
1901 किरखी (= कृषि) (कब॰ 27:17; 28:5)
1902 किरची (काँच के किरची में चुभ जाहे) (अमा॰18:18:1.20)
1903 किरछा (मंजुआ बाप-बेटी लुगा पसार रहल हल ~ में) (अमा॰173:1:1.4)
1904 किरपा (अमा॰10:14:1.12; 173:4:1.18; 174:12:1.25; नसध॰ 5:18.3)
1905 किरपा (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.25; 43:139.5)
1906 किरानी उरानी (बअछो॰ 9:45.5)
1907 किरिंग (गो॰ 4:20.14; रम॰ 14:108.9, 10)
1908 किरिंग (~ फूटना, बिना ~ फूटले उठबे नऽ करे) (नसध॰ 2:7.29; 30:132.14)
1909 किरिंग (टिंकू अप्पन बाबा के घिरनी देखा रहल हे । "ई खूब नाचऽ हई, बाबा ! एकरा में सुरुज नियर किरिंग निकसऽ हई । हम एकरा छोड़म ।") (अमा॰13:7:1.17; 18:18:1.18; 25:12:2.14)
1910 किरिआ (फूब॰ 2:8.24)
1911 किरिन (= किरिंग) (~ फूटना) (नसध॰ 34:145.15; 41:181.27; 44:192.27)
1912 किरिनियाँ (बिखिया भरल देखऽ बन के नगिनियाँ, डँसे लागी हमनी के चलल किरिनियाँ; बिरीछन के पात में, कन-कन के गात में लपटल किरिनियाँ के डोर) (अमा॰22:10:1.24; 25:22:2.24)
1913 किरिया (मसक॰ 73:19)
1914 किरिया (~ खाना) (नसध॰ 11:49.32)
1915 किरिया (तोहर  ~; ~ खाना) (अमा॰26:12:2.8; 166:7:2.18)
1916 किरिया धरउल (कब॰ 33:12)
1917 किरिया-करम (बअछो॰ 5:26.23)
1918 किरिया-करम (गामे के लोग दुन्नो माउग-मरद के किरिया करम कयलन) (अमा॰29:12:2.34; 163:11:2.8; 166:15:1.4, 16:1.25; 171:18:2.21)
1919 किरियाठ (कब॰ 63:21)
1920 किरीन (छिटकल ~) (अमा॰4:7:2.3)
1921 किलकाँटा (नसध॰ 46:202.24)
1922 किला (= किल्ला) (गइया-बछिया तोड़इ ~ पगहा) (अमा॰3:19:2.26)
1923 किलास (= क्लास) (हुनखा इयाद हे गुरुजी के सेवा-टहल  करते पढ़े वला ऊ समय । तीसरे किलास तक तो पढ़वे कयलन हल गुरुजी से कि बाबू जी गुजर गेला ।) (अमा॰24:7:1.9; 29:11:1.29)
1924 किल्लत (अमा॰20:6:1.17)
1925 किल्लाठोक (~ स्थान बनाना) (अमा॰3:6:1.12)
1926 किवाँर (= किवाड़, दरवाजा) (खुलल जइसहीं बिहान के किवाँर, दउड़-दउड़ के भौरन खोले लगलन कलियन के कंचुकी) (अमा॰21:9:1.24)
1927 किसनमाँ, किसनमा (गो॰ 6:27.22, 26)
1928 किसमत, किस्मत (~ के सिकंदर, ~ के खेल) (नसध॰ 31:135.17; 37:156.13)
1929 किसमिल्ला (गो॰ 4:23.7)
1930 किसान-मजूर (लगऽ हे कि इनसाल ~ में कहीं तकरार न हो जाय) (नसध॰ 35:152.3)
1931 किसानी (बासमति के मोरी गमके लग गेल लोग किसानी में) (अमा॰22:17:2.14)
1932 किसिम (बअछो॰ 4:22.11; 6:31.19; 7:36.14; 18:80.5; नसध॰ 33:144.28)
1933 किसिम (किसिम-किसिम के भासा; किसिम-किसिम के बेमारी) (अमा॰1:5:2.11; 173:3:2.31)
1934 किसुन (गो॰ 1:9.7)
1935 किस्मत (अमा॰13:1:1.1)
1936 किस्सागोई (लेखक में ~ के भंडार भरल लोकऽ हे) (अमा॰25:15:2:4)
1937 किहाँ (= के यहाँ) (चुभसे॰ 1:1.4, 2.28)
1938 किहाँ (= के यहाँ) (जब अवकाश काल लइकन किहाँ बितावल चाहऽ हथ, त बुढ़ारी के लास उठावे के बूता केकरो न होयल) (अमा॰17:7:1.18)
1939 किहां, कीहां, कीहाँ (= के यहाँ) (फूब॰ 5:18.20, 20.4, 10, 30; 8:26.3)
1940 की (= क्या) (फूब॰ 1:5.8, 15, 17; 2:8.16; मसक॰ 23:9)
1941 की (= क्या) (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही) (अमा॰14:6:1.1)
1942 कीनना (मसक॰ 157:4; 169:14)
1943 कीनना (दोकाने दोकान खोज के मन माफिक कपड़ा कीनऽ हे) (अमा॰12:16:2.6; 20:18:2.27)
1944 कीनना (बजार में एक बोतल दारू कीनलन) (मकस॰ 44:24)
1945 कीमती (नसध॰ 28:123.19; 36:153.11)
1946 कीरा (हम तोरा ला बरोबर मन में ~ पोसले रहली । हमरा केतना पाप भेल ।) (नसध॰ 24:102.24; 39:164.24)
1947 कीर्तन-उर्तन (नसध॰ 25:108.11-12)
1948 कीर्तन-भजन (नसध॰ 25:108.16)
1949 कीर्तनिया (कीर्तनियन) (अमा॰168:8:1.7)
1950 कील-काँटा (ई चमार हउ कि हरिजन के ~ हउ) (नसध॰ 27:121.4)
1951 कुँआर (~ बेटी) (अमा॰16:17:2.12)
1952 कुंजड़िन (अआवि॰ 32:16)
1953 कुंजी (ताला ~) (नसध॰ 1:4.7)
1954 कुअंक (गो॰ 10:43.26)
1955 कुइयाँ (अमा॰4:16:1.9; 17:19:1.23; 166:7:1.9; 173:15:1.13; अआवि॰ 58:17; फूब॰ 7:25.10; गो॰ 1:10.25; 5:24.31, 27.4; 7:33.30; नसध॰ 24:97.23)
1956 कुकरम (अमा॰17:5:2.21; 170:12:1.28; 173:11:1.29; नसध॰ 43:189.13)
1957 कुकरमी (नसध॰ 43:189.3, 16)
1958 कुकाठ (मसक॰ 148:17)
1959 कुकुअत (गो॰ 5:27.2)
1960 कुकुर (पड़लन राम ~ के पाला) (कब॰ 38:22)
1961 कुकुरौंधा (~ के पत्ता आउ फूल से ओकरा बड़ी सजइली हल) (अमा॰2:10:2.16)
1962 कुकुहारो (कब॰ 45:15)
1963 कुचकुच (~ अन्हरिया रात) (मकस॰ 32:12)
1964 कुचकुच (~ करिया) (नसध॰ 1:1.24)
1965 कुच-कुच अँधरिया (गो॰ 1:1.6; 2:11.30)
1966 कुच-कुच करिया (गो॰ 4:23.3)
1967 कुच-कुच, कुचकुच (~ अन्हरिया, ~ करिया)  (दप-दप गोर आउ कुच-कुच करिया मुँह बनावे ला पहिले रूपसज्जाकार के जादे मेहनत करे पड़ऽ हल । अब रेडिमेड पेंट के परयोग होवे लगल हे, त जादे मेहनत न लगे ।; कजरा में अँखिया के कुचकुच किनार रे) (अमा॰2:9:2.1; 16:6:2.16; 19:9:1.14)
1968 कुचकुचाना (येही बीच भोर भी हो गेल हल । कुचकुचिया बसेढ़ी में कुचकुचाय लगल हल, कौआ भी उड़-उड़ के बोले लगल हल ।) (अल॰26:81.17)
1969 कुचकुचिया (येही बीच भोर भी हो गेल हल । कुचकुचिया बसेढ़ी में कुचकुचाय लगल हल, कौआ भी उड़-उड़ के बोले लगल हल ।) (अल॰26:81.17)
1970 कुछो (बअछो॰ 2:14.23)
1971 कुटकुटाना (नसध॰ 4:14.20, 15.12)
1972 कुटनी (~ बुढ़िया) (नसध॰ 1:5.22)
1973 कुटाई-पिसाई (नसध॰ 21:84.11-12)
1974 कुटाई-पिसाई (घरे-घर जाके ~ करऽ ही, तब जाके सेर भर आटा के इन्तजाम होवऽ हे) (अमा॰27:8:2.4)
1975 कुटुम (गो॰ 7:34.2; मसक॰ 65:20; 73:18)
1976 कुटुम (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.8)
1977 कुटुम (कुटुमे) (बअछो॰ 16:70.22)
1978 कुटुम (सरबत पी ल ~ ! पियास लगल होतो ।; अखने होवऽ ह लाल पियर, देख के ~ के घर पर, तोर औकात नऽ आवे के हम्मर घर, इहे याद करइतो ।) (अमा॰18:8:1.24, 26; 23:20:1.7, 11; 173:15:1.26)
1979 कुट्टी (~ काटना) (ओकर दिन तो गाय-भईंस के चरावे, चारा लावे, ~ काट के खिलावे आउ दूध दुहवावे में बीत जा हल) (अमा॰6:17:1.3; 163:12:2.1; 165:13:1.1)
1980 कुट्टी, कूटी (कूटी - रम॰ 4:38.2)
1981 कुट्टी-कुट्टी (गो॰ 10:45.20)
1982 कुड़कुड़ाना (गो॰ 6:32.12)
1983 कुत्ता (कपार मुड़ा के चूना के टीका कर के गदहा पऽ चढ़ा के नऽ बिदा कर देलिअई तऽ हमर नाम नारद नऽ, बिलार, कुत्ता इया सियार) (नसध॰ 14:62.14)
1984 कुत्ता (कुतवन) (मसक॰ 54:14)
1985 कुत्ता-बिलाई (अमा॰173:16:2.25)
1986 कुदक्का (अआवि॰ 41:12)
1987 कुदना (अंगना में ओहनी कुदलन तो मिसिर जी के घर में डिबरी बरइत देख के अचकचा गेलन) (नसध॰ 16:70.11)
1988 कुदार (आर तर छप-छप चले कुदार) (अमा॰169:1:1.5)
1989 कुदार (लोहार के भट्ठी में फार-कुदार पजे लगल हल) (नसध॰ 6:28.8)
1990 कुदारी (अमा॰17:19:1.1, 3, 4; 173:21:2.15; बअछो॰ 12:56.11; मसक॰ 6:6; 112:5, 16, 17, 18; 113:12, 14, 16; 114:27; 115:1, 2, 6)
1991 कुदारी (कल से सब कमासुत लोग ओड़िया, कुदारी, कड़रनी, बसुला लेके अस्पताल के जमीन पर जुट जो) (नसध॰ 27:121.24; 48:209.15)
1992 कुद्दी (मसक॰ 99:7)
1993 कुन-मुन (गो॰ 6:32.11)
1994 कुनमुनाना (नसध॰ 3:13.7; 27:122.18-19)
1995 कुनेत (नसध॰ 30:133.31)
1996 कुपुत्तर (अमा॰3:8:1.4)
1997 कुप्पा (मोटा के ~ हो जाना) (अमा॰17:8:1.14)
1998 कुबारना (= कबारना) (नसध॰ 26:114.21)
1999 कुबेर (मसक॰ 88:12)
2000 कुबेर (= कुबेला) (अल॰42:137.12)
2001 कुबेर (= कुबेला) (~ होना) (अमा॰169:17:2.28)
2002 कुबेर (खेत में चउकी देइत तनी ~ हो गेल हल) (नसध॰ 37:158.1)
2003 कुबेला (खाय-पीए के बखेड़ा छोड़ऽ, न तऽ कुबेला हो जइतो । इहाँ से पांच-सात कोस से कम न बुले पड़तइ । रस्ते में ही कुछ खा-पी लेल जइतइ ।) (अल॰16.47.6)
2004 कुमार (चुनमुनिया के कुमार थोड़े रखम) (अमा॰3:11:2.24)
2005 कुम्ह (= कुम्भ) (मलमास मेला मगध के लेल बड़ परसिद्ध हे । जइसे कि कुम्ह मेला ।) (अल॰31:95.21)
2006 कुम्हरटोली (बअछो॰ 12:56.2)
2007 कुम्हार (नसध॰ 6:26.31)
2008 कुम्हार (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3; 6:18.11)
2009 कुरकी-जपती (कब॰ 5:9)
2010 कुरखेत (गो॰ 1:6.6)
2011 कुरचना (गो॰ 5:25.26; रम॰ 11:86.9; 12:94.18; 15:115.15, 118.12, 120.19)
2012 कुरचना (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.25)
2013 कुरचना (लइकन कुरचइत-खेलइत काली जी दने चल गेलन) (नसध॰ 11:46.25)
2014 कुरती-जपती (दरोगा उ लोग पर हर तरह के दफा लगा के केस कर देलक हल । वरंट जारी कर देलक हल । मुदा इ लोग तारीख पर कोट में हाजिर न होल तऽ कुरती-जपती के वरंट चला देल गेल हल ।) (अल॰28:85.12)
2015 कुरमाली (अमा॰163:5:2.12)
2016 कुरसी (अमा॰12:14:1.18)
2017 कुरसी (तीन ~ तक के उकटा-पुरान होना) (कब॰ 8:3)
2018 कुरसी (दसो ~ उलट देना) (कब॰ 32:18)
2019 कुरसी (सात ~ के उघारना) (नसध॰ 3:9.10)
2020 कुरहनी (सास-ससुर, पति के न सेवा करत, ऊ तो औरत ~ कहेबे करत) (अमा॰3:8:1.6)
2021 कुरीत (नसध॰ 12:52.11)
2022 कुलकुलाना (सुमितरी आज ओल के तरकारी बनउलक हल । ओल छिले से ओकर दूनों हाथ कुलकुला रहल हल ।) (अल॰9:26.22, 27.6)
2023 कुलकुलाहट (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.27)
2024 कुलगन (नसध॰ 15:67.5)
2025 कुलछन (बेटी ~ निकल जाहे तऽ येही सब हो हे बाकि अब तऽ नौजवान के जवाना हे) (नसध॰ 15:66.26)
2026 कुलटा (नसध॰ 14:63.12)
2027 कुलबुलाना (गो॰ 7:34.16; नसध॰ 5:17.28)
2028 कुलबोरन (कब॰ 1:1, 4)
2029 कुली (= कूली) (ई आन्दोलन में न सिरीफ छात्र आउ बुद्धजीविए हलन, बलुक मजूर, किसान, कुली आउ भंगी सब कूद गेलन) (अमा॰26:6:1.8)
2030 कुल्लम (गो॰ 1:7.18)
2031 कुल्लम (= कुल) (ढेर-ढेर सन् बुतरू ने, बस चाही कुल्लम एक सपूत ।) (अमा॰29:20:1.1)
2032 कुल्ली-कलाली (अलगंठवा भी कुल्ली-कलाली कर के दलान पर चल गेल हल ।) (अल॰29:89.18)
2033 कुवेरा (चलते चलऽ, अँटियावल धनमा ढो लऽ । फिन नानी घर जाय में कुवेरा हो जइतो ।) (अल॰9:29.18)
2034 कुहकना (अत्याचार से पीड़ित दुःखी मन के कुहकइत माय) (अमा॰7:14:1.22)
2035 कुह-कुह (~ मरना) (अमा॰5:10:2.18)
2036 कुहरना (अबरी रग्घू के सब तरक भुहा गेल आउ जमुना के कुहरले नियन बोलल) (नसध॰ 37:157.28)
2037 कुहा (~ फटना) (अमा॰5:13:1.15)
2038 कूटना (नसध॰ 6:26.12)
2039 कूटना-कपटना (कूट-कपट के) (अमा॰5:12:2.10)
2040 कूड़ा-कबाड़ा (अमा॰18:10:1.17)
2041 कूड़ी (नसध॰ 9:42.24)
2042 कूदना (अपना बले कूदना) (अपना बले कूदइत हल कि खूँटा के भरोसे हल) (नसध॰ 12:55.8)
2043 कूदना-फानना (मसक॰ 54:16; 71:3)
2044 के (= कौन) (बअछो॰ 1:9.14; गो॰ 5:26.9)
2045 के (=कौन) (लइका बनल हऽ गाँव में ~ न जानवऽ ?; ई ~ न जाने, तोर लोहा तो कसबा के लोग माने लगलन हे) (नसध॰ 8:34.6; 40:175.5)
2046 के लेके (के कारण, के लिए) (बअछो॰ 7:32.1)
2047 केंका (तनि बुन्द छेंका रइनी अउरो भयावन रामा, हरि-हरि बेंगवा के केंका ठनके नगिनियाँ रे हरी ।) (अमा॰169:18:2.4)
2048 केंकिआना (मकस॰ 65:9)
2049 केंचुलाना (केंचुलाल साँप) (अमा॰174:6:1.31)
2050 केंवाड़ी (अमा॰165:17:1.7; कब॰ 12:3; मसक॰ 116:8, 12)
2051 केउ (गो॰ 3:19.2)
2052 केकर (फूब॰ 4:14.25; नसध॰ 1:4.11)
2053 केकर (= किसका) (गो॰ 1:6.31)
2054 केकर (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही) (अमा॰14:6:1.1)
2055 केकर, केक्कर (बअछो॰ 6:30.17)
2056 केकरा (अमा॰1:18:1.7; 13:15:1.19; अआवि॰ 37:6; बअछो॰ 1:10.9)
2057 केकरो (अमा॰2:4:1.21; अआवि॰ 57:20; बअछो॰ 1:10.18, 11.17; 12:54.4; फूब॰ मुखबंध:1.14; 1:5.29; 6:21.14; नसध॰ 5:20.16, 22.31)
2058 केकरो (= किसी को) (गो॰ 1:2.29, 3.6)
2059 केकरो कुत्ता काटना (गो॰ 6:32.13)
2060 केतना (अमा॰12:9:2.27; अआवि॰ 36:11; 50:5, 10; बअछो॰ आमुख:4.25; 3:18.15; 9:41.12; मसक॰ 10:4, 6, 7)
2061 केतना (केतनो) (नसध॰ 2:7.10)
2062 केतवर (= केतवड़, कितना बड़ा) (अप्पन बेटा के तोर गोदी में डाल के केतवर किरपा करलथुन हे) (अमा॰10:14:1.12)
2063 केतवा, केतना (गो॰ 1:10.26, 31; 3:18.30; 5:26.7)
2064 केता (= केत्ता, कितना) (सुमितरी के चिट्ठी पढ़ के हमरा बुझा हो कि ओकरा पढ़े के जेहन हो । केता सुन्नर अच्छर में चिट्ठी लिखलको हो । जरुर उ पढ़तो ।) (अल॰10.31.30; 21:67.29)
2065 केतारी (अआवि॰ 39:1; गो॰ 1:9.28, 11.15; 3:16.10, 18.33; 7:35.15; रम॰ 11:83.3; 18:134.1, 9; नसध॰ 33:143.19; 36:156.5)
2066 केतारी (= ईख) (एही बीच दिलदार राम आउर रमेसर केतारी चीभते कारू महतो के विगहा पर से उतर दने से आ रहलन हल ।; हो सकऽ हो कि चनेसर महतो के केतरिया में इया पइनिया में बदमास लोग कर छिपइले होतो आउर भउकी देके हमनी के घात करे ला बुलावइत हो ।) (अल॰33:105.20, 28, 107.13)
2067 केतारी (ई कहानी में ~ के रस अइसन पोरे-पोर मिठा भरल हे; बेचारी के नस-नस तो ~ के डाँढ़ जइसन पेरा गेलइ हल, खाली खोइये तो बचलइ हे) (अमा॰2:13:2:4; 11:11:2.24; 168:8:2.10; 173:16:1.8)
2068 केतिना (चुभसे॰ 1:6.12)
2069 केत्ता (कब॰ 1:9; मसक॰ 10:8; 35:19)
2070 केत्ता (केत्ता खाहे मइया ? पेट हे कि नाद हे ? दूधवा पियौलक हल, केकरा इयाद हे ।।) (अमा॰14:18:2.23; 18:14:1.31)
2071 केत्ते (ई केत्ते अफसर के मेहरारू से बिना उपहारे खाली बात बना के खुश करके औफिस में महीनन के अँटकल बिल पास करैलन हे) (अमा॰19:13:2.20)
2072 केनहुँ (मसक॰ 129:4; 143:9; 146:3)
2073 केनहूँ (~ गेल होतथुन) (अमा॰11:15:2.13)
2074 केन्ने (= कन्ने) (अमा॰4:11:2.17; 165:19:1.13; 166:9:2.33)
2075 केमाड़ी (मसक॰ 52:1, 7, 21, 29)
2076 केमारी (मसक॰ 154:8)
2077 केरा (= केला) (नसध॰ 16:70.2)
2078 केराइ (रम॰ 18:133.4, 6, 8, 136.7)
2079 केराई (अमा॰3:18:2.21)
2080 केराव (गो॰ 1:11.12)
2081 केरो (= केकरो) (कभी बगइचा में तो कभी केरो दलान पर (अमा॰18:15:1.5)
2082 केल्हुआरी (अमा॰171:17:1.11; 172:20:1.22)
2083 केवला (= केवड़ा, संतरा) (फूब॰ 1:4.27)
2084 केवाँड़ी (मकस॰ 11:27; मसक॰ 93:28)
2085 केवाड़ी (अमा॰9:10:2.27; 13:6:2.1; फूब॰ 1:4.29; 4:13.8, 12)
2086 केवाड़ी (~ बन करना) (नसध॰ 4:15.19)
2087 केवाड़ी, केवाँड़ी (गो॰ 1:3.15, 17, 4.1, 7, 15, 17; 2:11.18, 19, 21, 29, 31; 8:37.15,....)
2088 केवाल (रम॰ 11:83.3, 4)
2089 केवाल (सउँसे भरमजाल के एक्के झटका में राय-छितिर करके मिसिर जी हमरा यथार्थ के ढेलगर ~ खेत में उठा के पटक देलन) (अमा॰5:10:2.3; 166:8:1.4)
2090 केवाला (अमा॰14:16:2.7; मसक॰ 98:14; रम॰ 5:46.9)
2091 केहानी (गो॰ 1:6.19, 20)
2092 केहानी (= कहानी) (रमेसर वीड़ी धरा के दिलदार राम के ओर देइत सदावृच्छ आउर रानी सुरंगा के केहानी कहे ला अनुरोध कइलक हल ।) (अल॰26:81.1)
2093 केहुनाटा-केहुनाटी (मसक॰ 97:6)
2094 कै (~ ठो) (अआवि॰ 50:12)
2095 कै (= कई) (नसध॰ 7:28.27)
2096 कै (= वमन) (~ करना) (नसध॰ 9:40.31; 38:163.21)
2097 कैंटी (ठोर पर ~ पड़ना) (मसक॰ 97:19)
2098 कैक (= कई एक) (फूब॰ 5:18.15, 20.5; 6:22.25)
2099 कैची (नसध॰ 1:1.20)
2100 कैटिआयल (ओकर सुक्खल मुँह, ~ ठोर आउ पीयर देह देखे के हमरा तनिक्को फुरसत नञ् हल) (अमा॰166:9:2.13)
2101 कैटी (~ बान्ह के) (नसध॰ 3:12.17)
2102 कैठो (= कै ठो) (अआवि॰ 25:17)
2103 कैडर (बअछो॰ 7:32.20)
2104 कैथी (लावऽ, खतिआन दऽ ! जनसेवक जी से पढ़वा लाऊँ । ओहु तो कैथी हिन्दी जानवे करऽ हथी । हिन्दी के अलावे ऊ रंगरेजीओ फुर्र-फुर्र पढ़ दे हथी ।) (अमा॰30:14:2.23)
2105 कैदा (बअछो॰ 8:37.7)
2106 कैदा (= कायदा) (नसध॰ 33:143.5)
2107 कैल-धैल (बअछो॰ 18:76.11)
2108 कैसन (फूब॰ 1:5.14, 23)
2109 कैसुं, कैसुँ (फूब॰ 2:7.25)
2110 कोंकड़ा खा जाना (मसक॰ 24:6)
2111 कोंकड़ा खाना (केकरो) (बअछो॰ 9:45.7)
2112 कोंकियाना (पोसुई कुत्ता अप्पन मालिक के साथ अस्पताल के बहरी बड़ी बेसब्री से कोंकियाइत हलन) (अमा॰11:8:1.9)
2113 कोंचना (नसध॰ 9:39.30)
2114 कोंचना (कोंच-कोंच के) (मसक॰ 89:22)
2115 कोंचना, कोचना (रम॰ 16:123.9)
2116 कोंची (नसध॰ 3:10.31)
2117 कोंढ़िआना (कोंढ़िआयल) (अमा॰11:20:1.22)
2118 कोंढ़ी (= कोंहड़ी) (बरस में एक बार जरे ओली होली, अब रोज जरऽ हे - कहियो फूल के, कहियो कोंढ़ी के ।) (अमा॰24:11:2.28)
2119 कोंहड़ा (गो॰ 1:11.16)
2120 कोंहड़ा के जान पानी करना (रम॰ 4:42.7)
2121 कोंहरा (= कोंहड़ा) (मकस॰ 58:4, 5)
2122 कोइरी (बअछो॰ 1:9.12; 5:24.6, 26.17)
2123 कोइरी (जमीदार के दमाद आउ खेत में बनियार के साथे चउकी देवे ? हे तो आखिर कोइरीये नऽ ?) (नसध॰ 37:158.10)
2124 कोइला (गो॰ 4:21.8)
2125 कोए (फूब॰ मुखबंध:1.12; 2:7.18, 28)
2126 कोख (चमइने से ~ छिपाना) (अमा॰13:5:2.4)
2127 कोख, कोंख (चमइन भिरु ~ लुकाना) (नसध॰ 34:147.24)
2128 कोचम-कोच (रम॰ 16:123.8)
2129 कोचामठ (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.22)
2130 कोचामहादे (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.22)
2131 कोट (= कोर्ट) (नसध॰ 47:205.25, 27; 48:209.18)
2132 कोट-कचहरी (धत् बउराहा ! दोसरा से पढ़ावे के काम न हे । एतना तो हमहूँ कर लेती । कोट कचहरी में जाही तो रजिन्दर लाल ओसीकानबीस पढ़िये दे हथ ।) (अमा॰30:14:2.26; 174:13:2.19)
2133 कोट-कचहरी (हमरा समझ में न आ रहल हे कि हम अपने सब के सामने पंचइती करे के लायक ही इया न । काहे कि इ सब काम नेता आउर कोट कचहरी के हे ।) (अल॰19:60.18)
2134 कोटा (रम॰ 8:65.20)
2135 कोठरी (करिया ~) (नसध॰ 43:191.17)
2136 कोठली (फूब॰ 4:15.11)
2137 कोठा (बिजुरी के तार से लगाइत पम्पिंग सेट आउर टरइक्टर के कल-पुर्जा खोलवावे से लेके दिन-दहाड़े लूट के माल में हिस्सा ले हल । जेकरा से खेत खरीदऽ हल, कोठा पर कोठा बनावऽ हल ।) (अल॰28:85.8)
2138 कोठिला (अमा॰1:14:1.30)
2139 कोठी (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
2140 कोठी-कोहा-कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.27)
2141 कोड़ना (खेत जोत-कोड़ के रब्बी बुन देलन) (नसध॰ 9:43.6; 33:142.10)
2142 कोढ़ (नसध॰ 12:51.24)
2143 कोढ़िया (नसध॰ 41:181.18)
2144 कोढ़ी (-".. ओहनी सउँसे गाँव के बेमारी मेम तो अपन माय-बाप नियन सेवा करऽ हथ ।" ""करऽ हथुन तो ठीके न हवऽ । हमनी के चोन्हा  का लगावऽ ह ? बाकि तनी हटिये के बइठऽ, कोढ़ी छूत के बेमारी हे, ओहू उजरका नऽ, गले ओला हवऽ ।") (नसध॰ 41:180.21)
2145 कोतवाल (उलटे चोर ~ के डाँटे) (नसध॰ 49:211.28)
2146 कोताही (मसक॰ 119:3; नसध॰ 49:212.13)
2147 कोना (नसध॰ 17:73.20, 21, 22, 23; 49:212.19, 22, 23)
2148 कोना (दुअरे पर बइठ बुढ़िया मटकी मार रहल हे । कोनमा में जमनकी भुंजा मसका रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.21)
2149 कोना-टुकड़ी (कोना-टुकड़िया-आधा खाके) (अमा॰166:14:2.20)
2150 कोनासी (~ घर) (कब॰ 36:11)
2151 कोनासी (~ घर) (सउँसे घर-अंगना में सन्नाटा फैल गेल । मरेवला रोवाई ~ घर से गूंजे लगल ।) (अमा॰167:9:1.27)
2152 कोनिया (~ घर) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।; दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ ।) (अल॰1:2.8; 9:27.18, 28.18; 12:37.22; 32:103.23)
2153 कोनिया (कोनिया घर) (अमा॰3:11:1.16)
2154 कोनियाँ, कोनिया, कोनिआ (रम॰ 6:54.2; 12:87.15, 91.20; 14:110.17; 19:143.10)
2155 कोनिया-भीतर (अमा॰166:8:2.21)
2156 कोय (अआवि॰ 108:31, 32; मसक॰ 57:9; 61:20; 84:29)
2157 कोय (= कोई) (अमा॰18:10:2.1; 170:5:1.11, 2.5; 174:5:1.3; फूब॰ 1:6.15)
2158 कोय (= कोई) (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
2159 कोयरिन (अआवि॰ 32:16)
2160 कोयरी (नसध॰ 40:178.10)
2161 कोर (कब॰ 1:11)
2162 कोर (= कौर) (औरत बेचारी के शरम से कोरो न उठ रहल हल) (अमा॰24:17:2.15)
2163 कोर (= कौर) (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.23)
2164 कोर (धोती के ~) (नसध॰ 4:14.30)
2165 कोरई (रम॰ 11:84.4)
2166 कोर-कसर (अआवि॰ 4:18; मकस॰ 57:10; मसक॰ 165:21)
2167 कोर-कसर ('बिहान' के स्तर ऊँचा उठावे में ऊ कउनो कोर-कसर बाकी न छोड़लन) (अमा॰28:15:1.18)
2168 कोर-घोंट (गो॰ 5:25.4)
2169 कोरव (चमइन भिरु ~ छिपावऽ हें ।) (नसध॰ 1:3.9)
2170 कोरसिर (कोरसिस ?) (खदेरन बहु तुरते सब समान जुटावे के ~ में लग गेल) (नसध॰ 19:76.20)
2171 कोरसिस (अमा॰1:4:1.11; 167:4:2.16; अआवि॰ 41:3; चुभसे॰ 1:3.9; 3:7.25, 13.13; गो॰ 1:8.15; 3:15.31; कब॰ 34:10; मसक॰ 59:8; 62:11; नसध॰ 2:8.2)
2172 कोलसार (रम॰ 11:83.7,8)
2173 कोलसार (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25)
2174 कोलसुप (मसक॰ 87:3; 90:25, 26)
2175 कोल्हू (रम॰ 11:83.11)
2176 कोस (नसध॰ 30:133.2)
2177 कोसिस (फूब॰ मुखबंध:1.6, 2.27)
2178 कोसी, कोशी (= कोस) (बअछो॰ 9:40.15, 41.13)
2179 कोहड़ी (ठोर पर कोहड़ी अइसन मुसकान) (अमा॰19:11:1.3)
2180 कोहड़ौरी (सेवइ, पापड़, तिलौरी, दनौरी, कोहड़ौरी आउ बहुत काम हे जे बइठला में कैल जा सकऽ हे) (नसध॰ 39:173.11)
2181 कोहबर (अमा॰1:13:2.18, 20, 22, 31; रम॰ 11:85.2; 18:135.12)
2182 कोहवर (~ रचाना) (पउँया-पार्टी रंग के चपल पहिन के, कान में कनौसी आउर नाक में नकवेसर पहिन के झनकावऽ हलइ । दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ । कोय-कोय कह हल कि "घोड़वा-घोड़िया राजी तऽ का करे गाँव के काजी ।") (अल॰32:103.23; 34:108.9., 11)
2183 कोहा (अलगंठवा के माय कोहा में जमल छाली भरल दूध के मथानी से मह के मखन निकाल ले हल आउ कोहा के कोहा मट्ठा गाँव-घर के गरीब-गुरबा के दे दे हल ।) (अल॰12.36.18, 19, 27; 43:138.7)
2184 कौंचल (फूब॰ 1:3.16)
2185 कौड़ी (~ खेल) (नसध॰ 11:49.9)
2186 कौपी (एक मिनट सोच के एगो किताब आउ ~ निकाल लेलक) (अमा॰173:21:1.13, 16)
2187 कौपी (तूँ खाना-खुराक जुटा देहु, किताब-कौपी-कपड़ा-लत्ता के भार हमरा ऊपर छोड़ दऽ । गाहे-बगाहे अनाज-पानी भी भेज देवो आउर का ।) (अल॰10.31.26)
2188 कौर (बिहारशरीफ के मगही में "कोर") (आज दू ~ चढ़ा के खा लेलन आउ ओसारे में खरहने खटिया पर लोघड़ गेलन) (नसध॰ 36:156.11)
2189 कौलबच्चिया (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बढ़नी के बाम देखइलक हल । फिर दूनो आपस में कौलबच्चिया कइलक हल कि तू नानी घर जाके पढ़ऽ आउर हम भी घर पर रह के पढ़वो ।) (अल॰1:4.9)
2190 कौलेजिया (नसध॰ 1:3.27)
2191 क्रियासील (नसध॰ 32:139.10) 
2192 क्वाटर (बअछो॰ 13:58.20; 16:73.3; गो॰ 1:1.16; 2:13.10, 14.14; 11:47.9)
2193 क्वाटर (= क्वार्टर) (चुभसे॰ 4:16.1; नसध॰ 25:104.30)
 

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