Sunday, October 18, 2009

39. वकारादि शब्द

10021 वंडी (= बंडी) (दिलदार राम ... मोहन सिंघ आउर अलगंठवा खादी के कुरता-पयजामा आउर काला वंडी पहनले बैठल हथ ।) (अल॰19:60.5)
10022 वइसन (जइसन ... ~) (अआवि॰ 48:32)
10023 वउसाह (अलगंठवा के कोय वउसाह न चलल हल, उ लोगन के सामने ।) (अल॰31:102.2)
10024 वकीलो (= वकील भी) (फूब॰ 1:5.2)
10025 वकू (गो॰ 11:48.20)
10026 वचन (~ देना) (नसध॰ 36:154.22)
10027 वजनी (जमुना जी हरदम्मे अप्पन ~ डिग्री से चोट करऽ हलन) (अमा॰16:16:1.6)
10028 वजह (अमा॰11:12:2.19)
10029 वजीफा (इनका पन्द्रह रुपइया महीना के सरकारी ~ भी मिले लगलइन) (अमा॰169:17:1.13)
10030 वतकुच्चन (= बतकुच्चन) (कभी-कभी अलगंठवा के माय-बाप में वतकुच्चन हो जा हल । तऽ माय एगो कहाउत कहऽ हल -"मइया के जिया गइया निअर आउ बपा के जिया कसइया निअर ।") (अल॰12.36.7)
10031 वनस्पतिक (तुलसी के ~ नाम) (अमा॰12:6:1.26)
10032 वरंट (= वारंट) (दरोगा उ लोग पर हर तरह के दफा लगा के केस कर देलक हल । वरंट जारी कर देलक हल । मुदा इ लोग तारीख पर कोट में हाजिर न होल तऽ कुरती-जपती के वरंट चला देल गेल हल ।) (अल॰28:85.11, 12)
10033 वरन (= वर्ण, रंग) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
10034 वरेठा (= बरेठा) (सुमितरी ओठगल केवाड़ी के वरेठा पकड़ के सले-सले खोल के अंगना में आ गेल हल ।) (अल॰29:89.17)
10035 वला (= वाला) (एकर नाम लेवे वला कोय नय हल; ई रस्ता से जाय वला कोई अदमी एकरा हटावऽ हे कि न !; जब इंगलैण्ड वला इहाँ आवऽ हल, तब गाँव में एगो उत्सव करल जा हलइ आउ एक-दू रात नाटक; बीड़ी-सिगरेट पीये वला) (अमा॰3:5:1.25; 4:8:1.26; 170:6:2.28; 173:13:1.7)
10036 वसफ (फूब॰ 6:22.5)
10037 वसुला (बअछो॰ 12:55.18)
10038 वसूल (सालो से जे एतना ~ हे, ऊ कइसे वसूल होयत) (अमा॰174:8:1.22)
10039 वहे (= ओहे) (फूब॰ 2:7.7; 3:11.13; 6:21.24, 22.26)
10040 वाजिब (अआवि॰ 73:5)
10041 वाजिब (इहाँ ओहनी के नाम धरना हम वाजिब न समझ रहली हे) (अमा॰25:21:2.17)
10042 वातावरण ("सुरुज महतो - जिन्दाबाज" के अवाज से ~ काँपे लगल) (नसध॰ 36:154.29)
10043 वाय चमकना (रम॰ 19:140.23)
10044 वारना (= बारना, जलाना) (सुमितरी ढिवरी वार के चिट्ठी लिखे लगल) (अल॰9:28.21)
10045 वासना (नसध॰ 35:150.32; 37:160.24)
10046 वास्ते (ई मगही साहित्य के वास्ते सामत ही तो हथ) (अमा॰25:21:2.16)
10047 वाह (= निर्वाह) (हमरा जात-भाय से खान-पान सब बन्द हो जायत । हमरा लोग अजात कर देतन । इहाँ तक कि गाँव से भी निकाल देतन । फिन हमरा वाह होयत ?) (अल॰43:143.10)
10048 विआ (= बिआ, बीज) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
10049 विआना (= ब्याना, बियाना) (एक समय अइसन भी हल कि ओकर घर में सचो के दूध-दही के नदी बहऽ हल । एगो भैंस इया गाय विसखा जा हल तऽ एगो विआ जा हल ।) (अल॰12.36.16)
10050 विआवान (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल । फिन कानों-कान विआवान हो जात हल ।) (अल॰3:6.1)
10051 विआह, बिआह (नसध॰ 1:4.4)
10052 विआह-सादी (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.16)
10053 विकसल (गो॰ 1:10.5)
10054 विख (= विष; दे॰ बिख) (फिन ओकर मुँह में गोलकी के दाना चिवावे ला देल गेल हल । गोलकी के चिवइते सुमितरी कहलक हल -"तीता लगऽ हे ।" एकर वाद झरताहर सब के विस्वास हो गेल हल कि विख सब उतर गेल हे ।) (अल॰18:59.18)
10055 विखिया जाना (रम॰ 11:84.18)
10056 विगहा, बिगहा (दस ~ खेत) (नसध॰ 5:18.22)
10057 विग्यापन (= विज्ञापन) (अमा॰18:14:1.19)
10058 विघा (= बिगहा, बीघा) (बटेसर के तीन विघा खेत हल ।; रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰7:21.4; 8:23.8)
10059 विघिन (= विघ्न) (नसध॰ 43:191.5)
10060 विचार (~ एक होना) (नसध॰ 37:159.24; 38:162.19)
10061 विचार-मंथन (नसध॰ 35:151.9, 18)
10062 विच्छा (= बिच्छा, बिच्छू) (सब लोग जमुना राम, गनौर पासमान, चमारी माली, कारू चौधरी आउर नाराइन भगत के खोजे लगला । काहे कि उ लोग झरताहर हथ । उ लोग साँप-विच्छा-कुत्ता आउर सियार के काटे पर मन्तर से झारऽ हथ ।) (अल॰18:54.27; 26:77.20, 21; 44:153.19)
10063 विदमान (बअछो॰ 5:27.8; गो॰ 1:3.4)
10064 विदमान (= विद्वान्) (अमा॰30:10:1.24)
10065 विदमान (= विद्वान्) (तूँ भी पढ़-लिख के विदमान बन जा, हम येही आसीरवाद दे हियो ।) (अल॰4:9.5)
10066 विदुर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
10067 विद्वान-मूरख (नसध॰ 35:150.28)
10068 विधना (~ के विचित्र लेखा) (अमा॰3:15:1.4)
10069 विध-बेवहार (बअछो॰ 14:62.9, 14)
10070 विधान (नसध॰ 35:150.32)
10071 विनास (= विनाश) (नसध॰ 37:161.4)
10072 विपत (नसध॰ 5:22.22)
10073 विपर (~ होना) (तनी गलती से गोड़ लगे ला छूट गेल तऽ ~ हो के साप दे देवे के चाहइन ?) (नसध॰ 23:94.18)
10074 विभेद (नसध॰ 35:152.5)
10075 वियावान (= बियाबान) (देउकी पांडे तऽ बिलाय के तरह सूंघले चलऽ हका घरे भाय । कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।) (अल॰8:25.3)
10076 विरधी (= वृद्धि) (जनसंख्या के जेतने ~ हे, ओतने शिक्षा में कमी हे) (अमा॰24:14:1.3, 33, 15:2.11)
10077 विरनी (= बिरनी, बिर्ह्‍नी, बिढ़नी) (जदि सरकार मधुमक्खी इया विरनी के खोंथा न उजाड़त तऽ हमनी आग लगा के धुँआ से धुक-धुक के मार देवइ ।) (अल॰25:76.23)
10078 विरोध (नसध॰ 30:133.24)
10079 विरोधी (नसध॰ 37:157.23)
10080 विलाप (करुणा ~) (नसध॰ 36:154.27)
10081 विलौक, ब्लाक, ब्लौक (बअछो॰ 9:40.4, 19, 42.5, 43.15)
10082 विवरन (= विवरण) (अमा॰30:8:2.6)
10083 विषय (चर्चा के ~ बनना) (नसध॰ 35:151.1; 37:160.19)
10084 विसखाना (एक समय अइसन भी हल कि ओकर घर में सचो के दूध-दही के नदी बहऽ हल । एगो भैंस इया गाय विसखा जा हल तऽ एगो विआ जा हल ।) (अल॰12.36.17)
10085 विसतउरी (= बिसौरी)सतमासु बुतरू अधिकतर विसतउरिए में मुआ जा हे । ओहि हाल बनेवाली इ नयकी सरकार के भी होयत ।) (अल॰44:154.21)
10086 विसमता (= विषमता) (नसध॰ 35:150.27)
10087 विसमता (= विषमता) (आरथिक ~) (अमा॰17:5:1.25)
10088 विसमाद (गो॰ 3:20.2)
10089 विसुनु (= विष्णु) (गाँव के पछिम वरहम थान जहाँ बहुत झमेठगर पीपर के पेड़ आउर बरहमा-विसुनु-महेश के पथल के पींडी हे, ओहीं तर जालिम आउर मोहन सिंघ बइठ के खैनी-चुना लगावइत बतिया रहलन हल ।) (अल॰33:105.18)
10090 विसूखना, विसूख जाना (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.22)
10091 विसेख (= विशेष) (नसध॰ 22:87.21)
10092 विस्तार (~ से बताना) (नसध॰ 35:151.30)
10093 विस्वामितर (= विश्वामित्र) (अल॰43:142.21)
10094 विहीन (वासना ~) (नसध॰ 37:160.25, 26)
10095 वेअगर (= बेअग्गर; व्यग्र) (अलगंठवा विआह के गीत सुने ला वेअगर हो गेल हल ।) (अल॰22:70.22)
10096 वेक्ति, बेक्ति (अआवि॰ 47:25)
10097 वेदी-वितान (मसक॰ 48:1)
10098 वेपारी (बअछो॰ 6:29.2)
10099 वेस (नसध॰ 1:1.18)
10100 वैद (डागडर-वैद) (कहियो डागडर-वैद से एक-दू चोट दवाई खइलियो आउ फिन ठीक) (अमा॰13:8:1.29)
10101 वैर (= बैर) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.31)
10102 वैसने (= ओइसने) (फूब॰ 5:19.10)
10103 वैसाखी पुनिया (अआवि॰ 81:2)
10104 वोकरना (आग ~) (चारो के बतियात अभी घंटा भर भी नऽ चढ़ल हल कि आग वोकरे लगल) (नसध॰ 34:146.18)
10105 वोकरो (= ओकरो) (फूब॰ 3:12.14)
10106 वोट-फोट (नसध॰ 30:130.29-30)
10107 वोही (फूब॰ 7:25.29)
10108 व्यक्त (~ करना) (नसध॰ 35:150.13)
10109 व्यवहारिक (नसध॰ 37:159.29, 30, 31)
10110 व्याकरन (= व्याकरण) (अमा॰30:8:2.31)
10111 व्याकरनिक (अमा॰30:9:2.27)
10112 व्योहार (= व्यवहार) (अमा॰19:1:1.7; 24:4:1.16)
10113 व्योहारिक (पढ़ाई के सैद्धान्तिक आउ व्योहारिक पक्ष में एतना अन्तर काहे हे ?) (अमा॰24:6:1.25)

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