Sunday, October 18, 2009

23. ठकारादि शब्द

4760 ठंइया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल ।) (अल॰6:16.9)
4761 ठंढा (~ परना) (एसो एतना ~ पर रहल हे कि लोग दिन भर देह पर कम्बल इया चदर लपेटले रहइत हे) (नसध॰ 27:118.16)
4762 ठंढाना, ठंढा जाना (नसध॰ 6:28.18)
4763 ठंढायल (बहरी से जादे ~ आवइत हऽ, सीत में सउँसे गोड़ बोथा हो गेलवऽ हे) (नसध॰ 27:119.6)
4764 ठइआँ, ठँइआ, ठँइया (रम॰ 13:100.3)
4765 ठइयाँ (गाँव में साँझ के इया गरमी के दुपहरिया में अदमी एक ठइयाँ बइठ के आपसी सुख-दुख के खिस्सा-गलबात करऽ हे) (अमा॰13:12:2.25)
4766 ठउरे (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल ।) (अल॰3:6.16; 13:40.28; 27:82.10)
4767 ठउरे (नगीना बोल के टिटकार रहल हल - "ठउरे घुर जो बेटा, एक ~ आउ लगा दे ..") (नसध॰ 37:158.3)
4768 ठउहरे (= ठउरे) (वसन्तपुर गाँव के पूरब - देवीथान । ठउहरे हाई इस्कूल, मिडिल इस्कूल आउर पाठशाला ।) (अल॰19:59.27)
4769 ठकमका जाना (गो॰ 2:11.26-27)
4770 ठकमुरकी (गो॰ 8:36.22; 11:48.5; मकस॰ 27:8-9; 31:26; मसक॰ 36:16)
4771 ठकमुरकी (~ मार देना; ~ लग जाना) (नेता जी के ~ मार देलक हल । उनका समझ में आइए न रहल हल कि हम का करुँ ?; जइसे-तइसे चुमौना के बाद बीच अंगना में दुल्हन के मुँह उघारल गेल । देख के लोग के ~ लग गेल । ... साक्षात् काली माई । कुरूपता के मुरती ।) (अमा॰6:18:2.1; 19:14:2.3; 165:23:1.29; 167:9:1.17)
4772 ठकमुरकी (~ लग जाना) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.27; 38:123.21)
4773 ठकहरिये, ठकहरे (मसक॰ 113:3)
4774 ठकुरवारी (नसध॰ 5:16.10)
4775 ठग (नसध॰ 8:33.10; 24:100.14)
4776 ठगना (नसध॰ 34:147.24)
4777 ठगना-ठुगना (ठग-ठुग के) (गो॰ 9:39.27)
4778 ठटगर (चुभसे॰ 4:14.1)
4779 ठट्ठा (हँसी-ठट्ठा) (अआवि॰ 80:8)
4780 ठठरी (अमा॰17:9:1.2)
4781 ठठरी (देह सूख के ~ हो गेलो) (नसध॰ 27:119.10)
4782 ठठरी-कफन (अमा॰17:9:1.2)
4783 ठठा-ठठा के, ठेठा-ठेठा के (रम॰ 12:87.1; 14:108.6)
4784 ठड़ी (सब सेवा करे लागी ऊ एक पाँव पर ठड़ी रहऽ हल) (मकस॰ 57:10)
4785 ठनकना (चमके बिजुलिया मलके चम-चम चम-चम, हरि-हरि ठनका ठनके झपसी लगावे रे हरी ।) (अमा॰169:18:1.31; 174:13:2.6)
4786 ठनकना (ठनका ~) (हहा के बरसा बरसे लगल हल । रह-रह के मलका मलक रहल हल जेकर इंजोर अंगना से पछिआरी घर तक झलका दे हल । रह-रह के ठनका भी ठनक रहल हल ।) (अल॰42:134.2, 3)
4787 ठनकना (माथा ~) (अआवि॰ 108:5)
4788 ठनका (नसध॰ 6:27.13)
4789 ठनका (~ ठनकना) (हहा के बरसा बरसे लगल हल । रह-रह के मलका मलक रहल हल जेकर इंजोर अंगना से पछिआरी घर तक झलका दे हल । रह-रह के ठनका भी ठनक रहल हल ।) (अल॰42:134.2)
4790 ठनका (चमके बिजुलिया मलके चम-चम चम-चम, हरि-हरि ठनका ठनके झपसी लगावे रे हरी ।) (अमा॰169:18:1.31; 174:13:2.6)
4791 ठनगन (= रूठने या जिद करने की क्रिया या भाव) (सबरहीं से लड़का हम्मर 'लेख' लिखे ला ठनगन कयले हलक त का करीं ?) (अमा॰30:18:1.13)
4792 ठन-गन करना (बअछो॰ 3:19.15)
4793 ठनना (बाबू जी लगातार दू-दू-तीन-तीन बरिस के बाद कलकत्ता से गाँव आबऽ हलन । जेकरा से दूनो परानी में भीतर-भीतर ठनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.4)
4794 ठनाक दे (नसध॰ 6:27.13)
4795 ठप (काम ~ पर जाना) (नसध॰ 36:153.17)
4796 ठमकना (अआवि॰ 108:2)
4797 ठमकना (ठमकल) (गो॰ 2:11.27)
4798 ठमकना, ठमक जाना (पूरब ओर से दू अमदी के भुनभुनाइत आउर लपकल-धपकल आवे के आहट मालूम भेल । अलगंठवा ठमक गेल हल ।) (अल॰41:126.23)
4799 ठरा (= ठर्रा) (नसध॰ 40:174.4)
4800 ठह-ठुह के (गो॰ 1:9.4)
4801 ठहरे (= ठउरे) (ठहरे नहर में बेंग-बगुला देखाइ पड़ रहल हल । कभी-कभी मछली चभ-सन करऽ हल । जेकरा से पानी में हिलकोरा होवे लगऽ हल ।) (अल॰25:75.8; 31:101.7, 102.24)
4802 ठाँम (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
4803 ठाठ (गवई ~, सहरिया ~, ~ से) (नसध॰ 21:87.13; 41:184.5)
4804 ठाठ-बाट (सहरी ~) (नसध॰ 25:107.12)
4805 ठाबुस (पीअर-पीअर ~ तारा-ऊपरी चढ़ल टर्र-टर्र करइत हलन) (नसध॰ 6:27.24)
4806 ठामा (धोतिया एक ठामा फट गेल । तइयो पेन्हइत रहलन ।) (अमा॰13:10:1.18, 23)
4807 ठाहरे (= ठउरे) (तीनो जलवार नदी पर पहुँच के दिसा-मइदान करे ला बइठ गेलन हल । ठाहरे चिरांड़ी हल ।) (अल॰21:66.24)
4808 ठिठुरना (जाड़ा से ठिठुरइत एगो बूढ़ा मिलल) (नसध॰ 10:44.26)
4809 ठिसपिसाना (चन्दर ठिसपिसाल बोललक -"बाबूजी ! हमरा से गलती होल । माफ कर देथी । ..") (अमा॰29:14:2.3)
4810 ठिसिआना (मार ठिठोली सभे ठिसिआवे लगलन) (अमा॰27:10:1.15)
4811 ठिसुआ जाना (मसक॰ 33:27)
4812 ठिसुआना (ठिसुआयल) (अमा॰165:23:1.20)
4813 ठिसुआना (ठिसुआल, ठिसुआएल) (मसक॰ 79:19; 111:10)
4814 ठिसुआना, ठिसुआ जाना (नसध॰ 6:24.17)
4815 ठीका-वीका (जेतना भी ठीका-वीका होवऽ हय, कलेसरे ले हय  । रुपइया के तो ऊ ठेक बाँध देलक हे ।) (अमा॰6:16:1.9)
4816 ठीके (बअछो॰ 8:38.9)
4817 ठीके में (= सचमुच) (नसध॰ 14:60.15)
4818 ठीठ (~ लगना) (मालिक, मलकिनी जब धान सोहतन तो लोग का कहत ? रग्घू के तो पहिलहीं से अपने पर ठीठ लगल हे आउ इनका देख के तो ऊ आउ सोर मचावे लगतन) (नसध॰ 39:169.4)
4819 ठुकमुकाना (मसक॰ 136:20; नसध॰ 8:34.27)
4820 ठुनुकना (गो॰ 5:24.8)
4821 ठुल (~ करना) (ठुल करते हँसते कहलन जुगेसर जी -"लऽ, जमानी में तो देहाते में सुखा देलको तोरा सरकार, अब बुढ़ारी में भेज रहलो हे शहर जमनिया ।") (अमा॰29:11:2.24)
4822 ठुल (~ करना) (पहिले तऽ गाँव के लोग ठुल करऽ हल, मुदा अलगंठवा के समझावे पर बूढ़ पुरनियन के बात समझ में आवे लगऽ हल ।; कुछ अउरत मरद मुँह बिचका-बिचका के ठुल भी कर रहल हल कि सुनऽ ही कि जमान जमान अउरत-मरद भी पढ़तइ । बूढ़ा तोता कहीं पोस मानलक हे ।) (अल॰2:5.15; 37:117.9; 43:144.4)
4823 ठूल (रम॰ 12:89.11)
4824 ठूलना (बर के बरहोर धर के ठूलुवा नियन ठूले लगल) (नसध॰ 40:175.30, 31)
4825 ठूलुवा (बर के बरहोर धर के ~ नियन ठूले लगल) (नसध॰ 40:175.30, 31)
4826 ठेंगराना, ठेंगरा जाना (बिहारशरीफ के मगही में "ढेंगराना", "ढेंगरा जाना") (नसध॰ 30:131.6)
4827 ठेंघना (ठेंघ-ठेंघ के गोजी के सहारे चलना) (नसध॰ 3:13.8; 41:181.27)
4828 ठेक (~ बाँधना) (जेतना भी ठीका-वीका होवऽ हय, कलेसरे ले हय  । रुपइया के तो ऊ ठेक बाँध देलक हे ।) (अमा॰6:16:1.10)
4829 ठेकना (मिसिर जी जजमनिका छूट जाय के डर से भिरु ठेकिए नऽ रहलन हे ) (नसध॰ 13:56.4)
4830 ठेकाना (नसध॰ 12:55.16; 24:99.4)
4831 ठेकाना (जनसेवक बाबू के खुशी के ~ न रहलइन ।; अपने खाय के ~ न हई, ऊ तोरा कहाँ से खिलयतो ?) (अमा॰30:15:1.31; 165:22:2.7)
4832 ठेकाना (ठेकौलक) (नसध॰ 49:211.18)
4833 ठेकी (केवाड़ी भीतरही से बन कर लेलन आउ ~ लगा लेलन) (नसध॰ 16:70.16, 21, 22, 23)
4834 ठेठ (अआवि॰ 41:1)
4835 ठेठ (ठेठ मगही के शब्द; घर में ठेठ मगही के ठाठ, साहित्यिक सम्मेलन में विशुद्ध हिन्दी जेकरा में तत्सम शब्द भी सरल देशज रूप में प्रयुक्त, राजनीतिक मंच पर जनता के आवाज में हँसी में लोट-पोट होवे वाला शेरो-शारी से युक्त भाषण, एहि पहचान हल शंकर दयाल बाबू के ।; बिहार मगही अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो॰ केसरी कुमार आउ शंकर दयाल बाबू दुन्नो साहित्य सेवी, ठेठ मगहिया आउ हिन्दी के प्रकाण्ड पंडित हलन ।) (अमा॰16:19:1.19; 30:5:1.18, 2.9, 9:2.2)
4836 ठेठा-ठेठा के (सामन-भादो के अंधरिया रात । ठेठा-ठेठा के पानी बरस रहल हल ।) (अल॰41:126.12; 42:132.3, 134.11)
4837 ठेठा-ठेठा के कमाना (कब॰ 45:13)
4838 ठेपाबोर (मसक॰ 103:21)
4839 ठेर (~ सिखाना) (हमरा ~ मत सिखाव, हम ~ सीखले ही । सहर में तोहनी के एको दिन बास होतो । चले आउ बाले के लुर हो ?) (नसध॰ 41:181.7)
4840 ठेलम-ठेला (अमा॰163:1:1.11)
4841 ठेहुना (= टेहुना) (जाके देखली कि ऊ परसौती औरत जिनका रातहीं नन्हकी होयल हल, अप्पन बिछौना पर बैठल, ठेहुना पर मूड़ी झुकैले रो रहलथिन हल) (अमा॰24:16:2.4; 30:17:2.28)
4842 ठोंगा (नसध॰ 39:173.10; 41:183.14, 184.5)
4843 ठोप (गो॰ 1:10.26; 3:16.24, 18.13; 6:29.23, ...)
4844 ठोर (मसक॰ 97:19)
4845 ठोर (= ओंठ) (नसध॰ 26:115.9)
4846 ठोर (= ओंठ) (ठोर पर कोहड़ी अइसन मुसकान) (अमा॰19:11:1.3, 14:1.9)
4847 ठोर (तीन चार अदमी आउ ओहिजा अपन ~ लेले असरा में हलन कि कदई में हेलावे के कखने मोका मिले) (नसध॰ 34:148.3)
4848 ठौर (कब॰ 43:13)
4849 ठौर-ठेकाना (अमा॰1:18:1.8; 13:5:2.11)
4850 ठौरे (= पास में) (मरला पर ठौरिये गंगा में लास जलाके अपने उतरी पेन्हले नन्दनामा दम-दाखिल होलन) (अमा॰170:6:1.33)

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